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________________ ३८५ 20-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-24-10-04-10-08-00-00-00-00-00-00-14 सप्तम् वक्षस्कार - सूर्य मण्डलों की संख्या आदि सूर्य मण्डलों की संख्या आदि (१६०) कइ णं भंते! सूरमंडला पण्णता? गोयमा! एगे चउरासीए मंडलसए पण्णत्ते। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया सूरमंडला पण्णत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे २ असीयं जोयणसयं ओगाहित्ता एत्थ णं पण्णट्ठी सूरमंडला पण्णत्ता, लवणे णं भंते! समुद्दे केवइयं ओगाहित्ता केवइया सूरमंडला पण्णत्ता? .. गोयमा! लवणे समुद्दे तिण्णि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता एत्थ णं एगूणवीसे सूरमंडलसए पण्णत्ते, 'एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे लवणे य समुद्दे एगे चुलसीए सूरमंडलसए भवंतीतिमक्खायं?॥ भावार्थ - हे भगवन्! सूर्यमण्डल कितने आख्यात हुए हैं? हे गौतम! सूर्यमण्डल १८४ कहे गए हैं। हे भगवन्! जम्बूद्वीप में कितने क्षेत्र का अवगाहन कर आने वाले क्षेत्र में कितने सूर्यमण्डल आख्यात हुए हैं? ___ हे गौतम! जम्बूद्वीप में १८० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर आगत क्षेत्र में ६५ सूर्यमंडल आख्यात हुए हैं। . ... ___ हे भगवन्! लवण समुद्र में कितने क्षेत्र का अवगाहन कर, आगत क्षेत्र में कितने सूर्यमंडल अभिहित हुए हैं? _हे गौतम! लवण समुद्र में ३३० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर आगत क्षेत्र में ११६ सूर्यमंडल कहे गए हैं। इस प्रकार जम्बूद्वीप एवं लवण समुद्र में कुल १८४ सूर्यमंडल बतलाए गए हैं। . (१६१) सव्वन्भंतराओ णं भंते! सूरमंडलाओ केवइयाए अबाहाए सव्वबाहिरए सूरमंडले पण्णत्ते? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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