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षष्ठ वक्षस्कार - जम्बूद्वीप के खण्ड आदि
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हे भगवन्! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत कितनी लाख नदियाँ पश्चिमाभिमुख होती हुईं लवण समुद्र में गिरती हैं?
हे गौतम! सात लाख अट्ठाईस हजार नदियाँ पश्चिमाभिमुख होती हुईं लवण समुद्र में गिरती हैं।
इस प्रकार कुल मिलाकर जम्बूद्वीप में १४ लाख ५६ हजार नदियाँ हैं, ऐसा बतलाया गया है।
विवेचन - शंका - प्रस्तुत सूत्र में जंबूद्वीप के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों में मागध, वरदाम और प्रभास ये तीन तीर्थ ही बताये हैं जबकि शत्रुजय, शिखरजी आदि स्थानों पर अनेकों महापुरुष मोक्ष में गये तो फिर इन्हें तीर्थ मानना या नहीं? ___ समाधान - जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र के छठे वक्षस्कार में ये तीन तीर्थ कहे गये हैं जबकि शत्रुजय, शिखर आदि को शास्त्र में कहीं भी तीर्थ नहीं बताया गया है और भरत आदि ने इनकी पूजा भी नहीं की है अतः इन स्थानों को तीर्थ मानना मिथ्या है क्योंकि जो भी महापुरुष मोक्ष में गये हैं वे त्याग तपस्या की करनी से गये, स्थान के कारण से नहीं। पन्नवणा सूत्र के दूसरे पद में बताया है कि सम्पूर्ण अढ़ाई द्वीप के प्रत्येक स्थान से अनन्त जीव मोक्ष में गये हैं। तो आज जहाँ कत्लखाने चल रहे हैं वहाँ से भी अनन्त जीव मोक्ष में गये हैं, क्योंकि समय के प्रभाव से स्थान में परिवर्तन होता रहता है। जैसे कोई धर्म स्थान अनार्य लोगों के अधिकार में आ जाने से वहाँ पर जीव हत्या भी हो सकती है और कोई हिंसा का स्थान धर्मस्थान भी बनाया जा सकता है। वहाँ से कोई जीव मोक्ष भी जा सकता है तो क्या उस कत्लखाने को भी तीर्थ मानोगे? जो संभव नहीं हैं क्योंकि फिर तो गजसुकुमाल मुनि का मुक्ति स्थल श्मशान को भी तीर्थ मानना होगा। अतः स्थानों को तीर्थ नहीं मानना चाहिए। क्योंकि त्याग और तपस्या ही तारने वाली है, स्थान नहीं। शास्त्र में इनको कहीं पर भी तीर्थ नहीं बताया गया है, किन्तु वैष्णव धर्मियों की नकल से काशी, मथुरा आदि की तरह जैन धर्म में भी आडम्बर प्रिय लोगों ने इन स्थानों को तीर्थ रूप से प्रचारित कर दिया और नये-नये स्थानों पर छह काय जीवों की हिंसा और आडम्बर बढ़ाते ही जा रहे हैं।
॥ छठा वक्षस्कार समाप्त॥
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