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________________ ३७४ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र सौभाग्य सूचक सुंदर रूप, शोभा एवं लावण्य सम्पन्न बत्तीस भद्रासन, बत्तीस नंदासन, तीर्थंकर के जन्म भवन में लाओ, मेरे आज्ञानुरूप कार्य हो जाने की सूचना दो। . वैश्रमण देव, देवराज शक्र के आदेश को विनयपूर्वक स्वीकार करता है, जृभक देव को बुलाता है और कहता है-देवानुप्रियो! शीघ्र ही बत्तीस कोटि रजत मुद्राएं यावत् भगवान् तीर्थंकर के जन्म स्थान में लाओ, आज्ञानुरूप कार्य सम्पन्नता की सूचना दो। वैश्रमण द्वारा आदिष्ट किए जाने पर मुंभक देव बहुत हर्षित होते हैं यावत् शीघ्र ही बत्तीस कोटि रोप्यमुद्रा यावत् भगवान् तीर्थंकर के जन्म स्थान में ले आते हैं यावत् वैश्रमण देव को कार्य हो जाने की सूचना देते हैं। तब वैश्रमण देव देवराज शक्र के पास आता है यावत् आज्ञानुसार कार्य हो जाने की जानकारी देता है। तदनंतर देवेन्द्र, देवराज शक्र अपने आभियोगिक देवों को आहूत करता है और उन्हें आज्ञा देता है - हे देवानुप्रियो! शीघ्र ही. भगवन् तीर्थंकर के जन्म नगर के तिराहों यावत् विशाल मार्गों पर जोर-जोर से उद्घोषणा करते हुए कहो-बहुत से भवनपति, वानव्यंतर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक . देव-देवियो! सुनो, तुम में से जो कोई तीर्थंकर एवं उनकी माता के प्रति अपने मन में अशुभ भाव लाएगा, आर्जवमंजरी की तरह उसका मस्तक सौ टुकड़ों में फट जायेगा। यह घोषित कर मुझे ज्ञापित करो। यो कहे जाने पर वे आभियोगिक देव यावत् जो आज्ञा यों कहकर अनुनय-विनयपूर्वक आदेश को स्वीकार करते हैं। देवराज शक्र के यहाँ से रवाना होकर भगवान् तीर्थंकर के जन्म नगर के तिराहों यावत् महत्त्वपूर्ण स्थानों पर पहुँच कर यो कहते हैं - बहुत से भवनपति यावत् देव-देवियो! आप में से जो कोई तीर्थंकर एवं उनकी माता के प्रति अशुभ भाव लायेगा यावत् उसके मस्तक के टुकड़े हो जायेंगे, ऐसी घोषणा कर वे देवराज शक्र को उनके आदेश पालन की सूचना देते हैं। तत्पश्चात् बहुत से भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देव भगवान् तीर्थंकर का जन्म-समारोह मनाते हैं। फिर वे नंदीश्वर द्वीप पर आते हैं और वहाँ अष्ट दिवसीय विराट जन्म महोत्सव समायोजित करते हैं, उसे संपन्न कर जिन-जिन दिशाओं से आए थे, उन्हीं में लौट जाते हैं। || पांचवां वक्षस्कार समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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