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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
हैं। प्रधान देवियाँ छह हैं। अंगरक्षक देव सामानिक देवों से चार गुने हैं। घंटा का नाम मेघस्वरा है। पदाति सेनानायक का नाम भद्रसेन है। इसके विमान का विस्तार पच्चीस सहस्त्र योजन है। उसका महेन्द्र ध्वज अढाई सौ योजन विस्तीर्ण है। असुरेन्द्र रहित सभी भवनवासी इन्द्रों का ऐसा ही वर्णन है। इतना अन्तर है - असुरकुमारों, नागकुमारों, सुपर्णकुमारों, विद्युतकुमारों, अग्निकुमारों, दिक्कुमारों, उदधिकुमारों, द्वीपकुमारों तथा वायुकुमारों की घंटाएं क्रमशः ओघस्वरा, मेघस्वरा, हंसस्वरा, क्रौंचस्वरा, मंजुस्वरा, मंजुघोसा, सुस्वरा, मधुरस्वरा, नंदिस्वरा, नंदिघोषा हैं।
चमरेन्द्र के चौसठ तथा बलीन्द्र के साठ सहस्त्र सामानिक देव हैं। असुरेन्द्रों को छोड़कर धरणेन्द्र आदि अठारह भवनवासी देवों के छह-छह सहस्त्र सामानिक देव हैं। उनके अंग. रक्षक देव सामानिक देवों से चार गने हैं। ___ चमरेन्द्र को छोड़कर दक्षिण दिशावर्ती भवनपति इन्द्रों के भद्रसेन नामक पदाति सेनापति हैं। बलीन्द्र को छोड़कर उत्तर दिशावर्ती भवनपति इन्द्रों के दक्ष नामक पदाति सेनापति है। वानव्यंतरेन्द्रों तथा ज्योतिष्केन्द्रों का वृत्तान्त पूर्ववत् ग्राह्य है। इतना अन्तर है - उनके चार-चार सहस्त्र सामानिक देव चार-चार प्रमुख देवियाँ एवं सोलह-सोलह सहस्त्र अंगरक्षक देव हैं। उनके विमान एक-एक सहस्त्र योजन विस्तार युक्त हैं। दक्षिण दिशावर्ती देवों की मंजुस्वरा संज्ञक घंटाएं हैं। उनके पदाति सेनापति तथा विमानकारी देव ‘आभियोगिक देव' हैं। ज्योतिष्क देवोंचन्द्रों एवं सूर्यों की क्रमशः सुस्वरा एवं सुस्वर निर्घोषा घंटाएं हैं। ये मंदर पर्वत पर आते हैं.' यावत् पर्युपासना करते हैं।
अभिषेक द्रव्यों का आनयन
(१५३) तए णं से अच्चुए देविंदे देवराया महं देवाहिवे आभिओगे देवे सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! महत्थं महग्धं महरिहं विउलं तित्थयराभिसेयं उवट्ठवेह। ___तए णं ते आभिओगा देवा हट्टतुट्ठ जाव पडिसुणित्ता उत्तरपुरस्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति २ ता वेउब्वियसमुग्घाएणं जाव समोहणित्ता अट्ठसहस्सं सोवण्णियकलसाणं एवं रुप्पमयाणं मणिमयाणं सुवण्णरुप्पमयाणं सुवण्णमणिमयाणं
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