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प्रज्ञप्ति सूत्र
सौधर्मेन्द्र, सनत्कुमारेन्द्र, ब्रह्मलोकेन्द्र, महाशक्रेन्द्र एवं प्राणकेन्द्र की सुघोषा घंटा, हरिनिगमेषी पदाति सेनापति उत्तरवर्ती निर्याणमार्ग तथा दक्षिणपूर्ववर्ती रतिकर पर्वत हैं।
ईशानेन्द्र, माहेन्द्र, लांतकेन्द्र, सहस्रारेन्द्र एवं अच्युतेन्द्र की महाघोषा घण्टा, लघुपराक्रम पदाति सेनाधिपति, दक्षिणवर्ती निर्याण मार्ग एवं उत्तर पूर्ववर्ती रतिकर पर्वत है । .
इन इन्द्रों की परिषदों के सम्बन्ध में वैसा ही वर्णन है, जैसा जीवाभिगम सूत्र में आया है। इन्द्रों के जितने जितने सामानिक देव होते हैं, अंगरक्षक देव उनसे चार गुने अधिक होते हैं। सबके यान-1 - विमान एक-एक लाख योजन विस्तारयुक्त होते हैं तथा उनकी ऊंचाई अपने विस्तार के अनुरूप होती है। सबके महेन्द्र ध्वज एक-एक योजन विस्तार युक्त होते हैं। शक्र के अतिरिक्त सब मंदर पर्वत पर समवसृत होते हैं यावत् भगवान् तीर्थंकर की पर्युपासना करतें हैं । चमरेन्द्र आदि का आगमन
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तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे असुरिंदे असुरराया चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए चमरंसि सीहासणंसि चउसट्ठीए सामाणियसाहस्सीहिं तायत्तीसाए तायत्तीसेहिं चउहिं लोगपालेहिं पंचहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अणियाहिवईहिं चउहिं चउसट्ठीहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अहि य जहा सक्के णवरं इमं णाणत्तं - दुमो पायत्ताणीयाहिवई ओघस्सरा घण्टा विमाणं पण्णासं जोयणसहस्साइं महिंदज्झओ पंचजोयणसयाइं विमाणकारी आभिओगिओ देवो अवसिद्धं तं चेव जाव मंदरे समोसरइ पज्जुवासइत्ति ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं बली असुरिंदे असुरराया एवमेव णवरं सट्ठी सामाणिय- साहसीओ चउग्गुणा आयरक्खा महादुमो पायत्ताणीयाहिवई महाओहस्सरा घण्टा सेसं तं चेव परिसाओ जहा जीवाभिगमे ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं धरणे तहेव णाणत्तं - छसामाणियसाहस्सीओ छ अग्गमहिसीओ चउग्गुणा आयरक्खा मेघस्सरा घण्टा भद्दसेणो पायत्ताणीयाहिवई विमाणं पणवीसं जोयणसहस्साइं महिंदज्झओ अड्डाइज्जाइं
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