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३४७ *9-9-0-0-0-0-0-0-0-0-10-04-10-9-8-0-0-00-00-00-00-00-00-00-00-00-19-04-10-04-10-16-08-00-100-00-00-00-00-00-00
पंचम वक्षस्कार - रुचकवासिनी दिक्कुमारिकाओं द्वारा उत्सव
सुणंतु भवंतो बहवे सोहम्मकप्पवासी वेमाणियदेवा देवीओ य सोहम्मकप्पवासी वेमाणियदेवा देवीओ य सोहम्मकप्पवइणो इणमो वयणं हियसुहत्थं-आणवेइ णं भो! सक्के तं चेव जाव अंतियं पाउन्भवहत्ति, तए णं ते देवा देवीओ य एयमढे सोच्चा हट्ठतुट्ठ जाव हियया अप्पेगइया वंदणवत्तियं एवं पूयणवत्तियं सक्कारवत्तियं सम्माणवत्तियं दंसणवत्तियं कोऊहलवत्तियं जिणभत्तिरागेणं अप्पेगइया सक्कस्स वयणमणुवट्ट-माणा अप्पेगइया अण्णमण्णमणुवट्टमाणा अप्पेगइया तं जीयमेयं एवमाइत्तिकट्ट जाव पाउन्भवंतित्ति।
तए णं से सक्के देविंदे देवराया ते वेमाणिए देवे देवीओ य अकालपरिहीणं चेव अंतियं पाउब्भवमाणे पासइ २ त्ता हट्ट० पालयं णामं आभिओगियं देवं सद्दावेइ २त्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अणेगखम्भसयसण्णिविटुं लीलट्ठियसालभंजियाकलियं ईहामिय-उसभ-तुरग-णर-मगर-विहग-वालगकिण्णर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं खंभुग्गयवइरंवेइया-परिगयाभिरामं विजाहरजमलजुयल-जंतुजुत्तं पिव अच्चीसहस्समालिणीयं रूवगसहस्सकलियं भिसमाणं भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेसं सुहफासं सस्सिरीयरूवं घण्टावलियमहरमणहरसरं सुहं कंतं दरिसणिजं णिउणोवियमिसिमिसिंतमणिरयणघंटियाजालपरिक्खित्तं जोयण-सयसहस्सविच्छिण्णं पंचजोयणसयमुग्विद्धं सिग्धं तुरियं जइणणिव्वाहिं दिव्वं जाण-विमाणं विउव्वाहि २त्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि।
शब्दार्थ - उड्डलोग - ऊर्ध्वलोक, सयक्कऊ - शतक्रतु-पूर्वभव में कार्तिक श्रेष्ठी के रूप में सौ बार श्रावक की पंचम प्रतिमा के आराधक, सहस्सक्खे - सहस्त्राक्ष-अपने पांच सौ मंत्रियों के एक सहस्त्र नेत्रों के सहयोग द्वारा कार्यशील, पागसासणे - पाकशासन - पाक संज्ञक दैत्य का विनाश करने वाले, अरयं - रज रहित, आलइय - आलंबित-लटकती हुई, विलिहिजमाण - शोभायमान होते हुए, बोंदि - देह, आभोएइ - देखता है, पयलिऊ - प्रचलित, ओमुयइ - उतारी, उल्लालेइ - बजाया, दूसं - दूष्य-वस्त्र, लंबूसग - कंदुक के आकार के आवरण-लूम्बे।
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