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पंचम वक्षस्कार - ऊर्ध्वलोकवर्तिनी दिक्कुमारिकाओं द्वारा समारोह
कल्याणकारी, मृदुल, अनुर्ध्वगामी, भूमितल को स्वच्छ करने वाले, सभी ऋतुओं में खिलने वाले फूलों के सौरभ से युक्त सुगंध को पुंजीभूत रूप में दूर-दूर तक फैलाने वाले, तिरछे बहते हुए वायु द्वारा भगवान् तीर्थंकर के भवन के योजन परिमित घेरे को जिस प्रकार एक कार्यनिपुण सेवन का पुत्र यावत् तिनके, पत्ते, लकड़ियाँ, कचरा, अशुचि-गंदे पदार्थ मैले एवं सड़े-गले दुर्गन्ध युक्त पदार्थों को एक तरफ डाल देता है, उसी प्रकार चारों ओर से एकत्रित कर एक तरफ डाल देती हैं। फिर वे दिक्कुमारियाँ भगवान् तीर्थंकर एवं उनकी माता से न अधिक दूर न अधिक निकट स्थित होती हुईं, मंद स्वर से गान आरम्भ करती हुई क्रमशः उच्च स्वर में संगानरत रहती हैं।
ऊर्ध्वलोकवर्तिनी दिक्कुमारिकाओं द्वारा समारोह
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तेणं कालेणं तेणं समएणं उडलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहिं २ कूडेहिं सएहिं २ भवणेहिं सएहिं २ पासायवडेंसएहिं पत्तेयं २ चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं एवं तं चेव पुव्ववण्णियं जाव विहरंति, तंजहा
मेहंकरा १, मेहवई २, सुमेहा ३, मेहमालिणी ४ ।
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सुवच्छा ५, वच्छमित्ता य ६, वारिसेणा ७, बलाहगा ८ ॥१॥
तए णं तासिं उडलोगवत्थव्वाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारी - महत्तरियाणं पत्तेयं २ आसणाई चलति, एवं तं चेव पुव्ववण्णियं भाणियव्वं जाव अम्हे णं देवाणुप्पिए! उड्डलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ जेणं भगवओ तित्थयरस्स जम्मणमहिमं करिस्सामो तेणं तुब्भाहिं ण भाइयव्वंति-कट्टु उत्तरपुरत्थिमं दिसीभांगं अवक्कमंति २ ता जाव अब्भवद्दलए विउव्वंति २ ता जाव तं हियरयं णट्ठरयं भट्ठरयं पसंतरयं उवसंतरयं करेंति २ त्ता खिप्पामेव पच्चुवसमंति, एवं पुष्पवद्दलंसि पुप्फवासं वासंति वासित्ता जाव कालागुरुपवर जाव सुरवराभिगमणजोग्गं करेंति २ त्ता जेणेव भयवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छंत २ ता जाव आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ।
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