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चतुर्थ वक्षस्कार - मंदर पर्वत के काण्ड
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वहाँ बहुत से भवनपति यावत् वैमानिक देव-देवियों द्वारा वप्रादि विजयों के समुत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक किया जाता है।
हे भगवन्! पडकवन में रक्तकंबल शिला कहां बतलाई गई है?
हे गौतम! मंदर पर्वत की चूलिका के उत्तर में पंडकवन के उत्तरी किनारे पर रक्त कंबल शिला का वर्णन हुआ है। यह सर्वथा तपनीय जाति के उच्च स्वर्ण से निर्मित है, उज्वल है इसके ठीक मध्य में सिंहासन है, यहां भवनपति यावत् वैमानिक देव-देवियाँ एरावत क्षेत्र में प्रादुर्भूत तीर्थंकरों का अभिषेक करते हैं।
मंदर पर्वत के काण्ड
(१३७) मंदरस्स णं भंते! पव्वयस्स कइ कण्डा पण्णत्ता?
गोयमा! तओ कंडा पण्णत्ता, तंजहा-हिट्ठिल्ले कंडे मज्झिल्ले कण्डे उवरिल्ले कण्डे।
मंदरस्स णं भंते! पव्वयस्स हिट्ठिल्ले कण्डे कइविहे पण्णत्ते? गोयमा! चउव्विहे पण्णते, तंजहा-पुढवी १ उवले २ वइरे ३ सक्करा ४। मज्झिमिल्ले णं भंते! कण्डे कइविहे पण्णते? गोयमा चउव्विहे पण्णत्ते, तंजहा-अंके १ फलिहे २ जायरूवे ३ रयए ४। उवरिल्ले० कंडे कइविहे पण्णते? गोयमा! एगागारे पण्णत्ते सव्वजम्बूणयामए। मंदरस्स णं भंते! पव्वयस्स हेट्ठिल्ले कण्डे केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते? गोयमा! एगं जोयणसहस्सं बाहल्लेणं पण्णत्ते। मज्झिमिल्ले० कण्डे पुच्छा? गोयमा! तेवहिँ जोयणसहस्साई बाहल्लेणं प०। उवरिल्ले पुच्छा?
गोयमा! छत्तीसं जोयणसहस्साइं बाहल्लेणं प०, एवामेव सपुव्वावरेणं मंदरे पव्वए एगं जोयणसयसहस्सं सव्वग्गेणं पण्णत्ते।।
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