________________
चतुर्थ वक्षस्कार - अभिषेक शिलाएं
३१६ *-*-*-*-*----*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-12-2-8-28-08-28-29-08-2--**-*-*-*-*-*-*-*-8-19-12-08-10
कहि णं भंते! पण्डगवणे पण्डुकंबलसिला णामं सिला पण्णता?
गोयमा! मंदरचूलियाए दक्खिणेणं पण्डगवणदाहिणपेरंति एत्थ णं पण्डगवणे पण्डुकंबलसिला णामं सिलापण्णत्ता, पाईणपडीणायया उत्तरदाहिणविच्छिण्णा एवं तं चेव पमाणं वत्तव्वया य भाणियव्वा जाव तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झ-देसभाए एत्थ णं महं एगे सीहासणे पण्णत्ता तं चेव सीहासणप्पमाणं तत्थ णं बहूहिं भवणवइ जाव भारहगा तित्थयरा अहिसिच्वंति,
कहि णं भंते! पण्डगवणे रत्तसिला णामं सिला पण्णत्ता?
गोयमा! मंदरचूलियाए पच्चत्थिमेणं पण्डगवण-पच्चत्थिमपेरंते एत्थ णं पण्डगवणे रत्तसिला णामं सिला पण्णत्ता, उत्तरदाहिणायया पाईणपडीणविच्छिण्णा जाव तं चेव पमाणं सव्वतवणिजमई अच्छा० उत्तरदाहिणेणं एत्थ णं दुवे सीहासणा पण्णत्ता, तत्थ णं जे से दाहिणिल्ले सीहासणे तत्थ णं बहूहिं भवण० पम्हाइया तित्थयरा अहिसिच्चंति, तत्थ णं जे से उत्तरिल्ले सीहासणे तत्थ णं.बहूहिं भवण जाव वप्पाइया तित्थयरा अहिसिच्वंति,
कहि णं भंते! पण्डगवणे रत्तकंबलसिला णामं सिला पण्णत्ता?
गोयमा! मंदरचूलियाए उत्तरेणं पण्डगवणउत्तरचरिमंते एत्थ णं पण्डगवणे रत्तकंबलसिला णामं सिला पण्णत्ता, पाईणपडीणायया उदीणदाहिणविच्छिण्णा सव्वतवणिजमई अच्छा जाव मज्झदेसभाए सीहासणं, तत्थ णं बहूहिं भवणवइ जाव देवेहिं देवीहि य एरावयगा तित्थयरा अहिसिच्चंति।
भावार्थ - हे भगवन्! पंडकवन में कियत्संख्यक अभिषेक शिलाएं हैं?
हे गौतम! वहाँ चार अभिषेक शिलाएं वर्णित हुई हैं - १. पण्डुशिला २. पण्डुक बलशिला ३. रक्तशिला ४. रक्तकंबल शिला।
हे भगवन्! पंडकवन में पण्डुशिला कहाँ वर्णित हुई है?
हे गौतम! मंदर पर्वत की चूलिका के पूर्व में, पंडकवन के पूर्वी किनारे पर, पंडकवन में पण्डुशिला वर्णित हुई है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बी एवं पूर्व-पश्चिम चौड़ी है। उसकी आकृति आधे चन्द्रमा के समान है। वह ५०० योजन लम्बी, २५० योजन चौड़ी एवं चार योजन मोटी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org