________________
चतुर्थ वक्षस्कार - नंदन वन
३१३
-------
णामं कूडे पण्णत्ते० पंचसइया कूडा पुव्ववण्णिया भाणियव्वा, देवी मेहंकरा रायहाणी विदिसाएत्ति १ एयाहिं चेव पुव्वाभिलावेणं णेयव्वा इमे कूडा इमाहिं दिसाहिं पुरथिमिल्लस्स भवणस्स दाहिणेणं दाहिणपुरथिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स उत्तरेणं मंदरे कूडे मेहवई देवी रायहाणी पुव्वेणं २ दक्खिणिल्लस्स भवणस्स पुरथिमेणं दाहिणपुरथिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पच्चत्थिमेणं णिसहे कूडे सुमेहा देवी रायहाणी दक्खियेणं दक्खिणिल्लस्स भवणस्स पच्चत्थिमेणं दक्खिणपच्चत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पुरथिमेणं हेमवए कूडे हेममालिणी देवी रायहाणी दक्खिणेणं पच्चस्थिमिल्लस्स भवणस्स दक्खिणेणं दाहिणपच्चथिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स उत्तरेणं रयए कूडे सुवच्छा देवी रायहाणी पच्चत्थिमेणं पच्चत्थिमिल्लस्स भवणस्स उत्तरेणं उत्तरपच्चथिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स दक्खिणेणं रुयगे कुडे वच्छमित्ता देवी रायहाणी पच्चत्थिमेणं उत्तरिल्लस्स भवणस्स पच्चत्थिमेणं उत्तरपच्चत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पुरथिमेणं सागरचित्ते कूडे वइरसेणा देवी रायहाणी उत्तरेणं उत्तरिल्लस्स भवणस्स पुरथिमेणं उत्तरपुरथिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पच्चत्थिमेणं वइरकूडे बलाहया देवी रायहाणी उत्तरेणंति।
कहि णं भंते! णंदणवणे बलकूडे णामं कूडे पण्णत्ते? ... गोयमा! मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरस्थिमेणं एत्थ णं णंदणवणे बलकूडे णामं कूडे पण्णत्ते, एवं जं चेव हरिस्सहकुडस्स पमाणं रायहाणी य तं चेव बलकूडस्सवि, णवरं बलो देवो रायहाणी उत्तरपुरस्थिमेणंति।
भावार्थ - हे भगवन्! मंदर पर्वत पर नंदनवन किस स्थान पर आख्यात हुआ है?
हे गौतम! भद्रशालवन के अति समतल एवं रम्य भूमिभाग से ५०० योजन ऊपर की ओर जाने पर मंदर पर्वत पर नंदनवन आता है। चक्रवाल विष्कंभ-पहिए की तरह सममंडल विस्तार युक्त परिधि की अपेक्षा से वह पांच सौ योजन गोलाकार है। उसकी आकृति वलय-कंकण के समान है। इस कारण उसने मंदर पर्वत को चारों ओर से आवृत्त कर रखा है। नंदनवन के बाहर
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org