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________________ चतुर्थ वक्षस्कार - मंदर पर्वत ३११ +9-10-19-10-08-10--28-10-28-06-24-10-16-10-28-34-28-28-10-18-10-20-04-28-48-8--4-24-10-14-4-100-10-28-0-00-00-00-10-28 हे भगवन्! भद्रशाल वन में दिशाहस्तिकूट-हाथी जैसी आकृति से युक्त शिखर कितने कहे गये हैं? . हे गौतम! वहाँ आठ दिग्रहस्तिकूट बतलाए गए हैं - १. पद्मोत्तर २. नीलवान ३. सुहस्ती ४. अंजनगिरी ५. कुमुद ६. पलाश ७. अवतंस ८. रोचनागिरी॥ १॥ __ हे भगवन्! मंदर पर्वत पर, भद्रशाल वन में पद्मोत्तर संज्ञक दिग्हस्तिकूट किस स्थान पर प्रतिपादित हुआ है? हे गौतम! मंदर पर्वत के उत्तर-पूर्व में तथा पूर्व दिशावर्तिनी शीता महानदी के उत्तर में पद्मोत्तर संज्ञक दिग्हस्तिकूट कहा गया है। वह ऊँचाई में पाँच सौ योजन एवं जमीन में पाँच सौ योजन गहरा है। उसकी चौड़ाई एवं परिधि चुल्लहिमवान पर्वत के तुल्य है। प्रासाद आदि का वर्णन पहले की ज्यों है। वहाँ पद्मोत्तर नामक देव रहता है। इसकी राजधानी उत्तर-पूर्व में स्थित है। . नीलवान् नामक दिग्हस्तिकूट मंदर पर्वत के दक्षिण-पूर्व में तथा पूर्व-दिशावर्तिनी शीता महानदी के दक्षिण में है। वहाँ नीलवान् नामक देव रहता है। उसकी राजधानी दक्षिण-पूर्व में है। सुहस्ती नामक दिग्हस्तिकूट मंदर पर्वत के दक्षिण-पूर्व में है तथा दक्षिण दिशावर्तिनी शीतोदा महानदी की पूर्व दिशा में है। वहाँ सुहस्ती नामक देव निवास करता है। उसकी राजधानी दक्षिण-पूर्व में है। इसी प्रकार अंजनगिरी नामक दिग्हस्तिकूट मंदर पर्वत के दक्षिण-पश्चिम में तथा दक्षिण दिशावर्तिनी शीतोदा महानदी के पश्चिम में है। उसका अधिष्ठायक देव अंजनगिरी है, जिसकी राजधानी दक्षिण-पश्चिम में है। कुमुद नामक दिशागत हस्तिकूट मंदर पर्वत के दक्षिण-पश्चिम में एवं पश्चिमदिग्वर्तिनी शीतोदा महानदी के दक्षिण में है। वहाँ कुमुद नामक देव निवास करता है। उसकी राजधानी दक्षिण-पश्चिम में अवस्थित है। ____ पलाश नामक विदिशागत हस्तिकूट मंदर पर्वत के उत्तर-पश्चिम में तथा पश्चिम दिग्वर्तिनी शीतोदा महानदी के उत्तर में है। वहाँ पलाश नामक देव निवास करता है। उसकी राजधानी उत्तर-पश्चिम में विद्यमान है। - इसी प्रकार अवतंस विदिशागत हस्तिकूट मंदर पर्वत के उत्तर-पश्चिम में तथा उत्तर दिशावर्तिनी शीता महानदी के पश्चिम में है। वहाँ अवतंस नामक देव निवास करता है। उसकी राजधानी उत्तर-पश्चिम में है। - रोचनागिरी नामक दिग्हस्तिकूट मंदर पर्वत के उत्तर-पूर्व में, उत्तरवर्ती शीता महानदी के पूर्व में है। वहाँ रोचनागिरी नामक देव अपनी उत्तर-पूर्व में स्थित राजधानी के साथ निवास करता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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