________________
चतुर्थ
गांथा - वहाँ विद्यमान कूट निम्नांकित रूप में हैं - १. सिद्धायतन २. दक्षिणार्द्ध कच्छ ३. खंडप्रपातगुहा ४. मणिभद्र ५. वैताढ्य ६. पूर्णभद्र ७. तमिस्रगुहा ६. वैश्रमणकूट ॥ १॥
८. उत्तरार्द्धकच्छ
हे भगवन्! जंबूद्वीप में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत उत्तरार्द्ध कच्छ संज्ञक विजय कहाँ आख्यात हुआ है?
हे गौतम! वैताढ्य पर्वत के उत्तर में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, जम्बूद्वीप के अन्तर्गत उत्तरार्द्धकच्छ विजय आख्यात हुआ है यावत् कतिपय यहाँ सिद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं पर्यन्त सारा विस्तृत वर्णन योजनीय है । .
कच्छ - विजय
हे भगवन्! जम्बूद्वीप में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत, उत्तरार्द्ध कच्छ विजय में सिंधुकुण्ड कहां प्रतिपादित हुआ है ?
हे गौतम! माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में ऋषभकूट के पश्चिम में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी नितंब - मध्यभाग में, जम्बूद्वीप में, महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत, उत्तरार्द्धकच्छ विजय में सिंधुकुण्ड आख्यात हुआ है। वह लम्बाई चौड़ाई में साठ-साठ योजन है यावत् भवन, राजधानी आदि से संबंधित समस्त वर्णन भरत क्षेत्रवर्ती सिंधुकुण्ड के तुल्य योजनीय है यावत् उस सिंधुकुण्ड के दक्षिणी तोरण से सिंधु महानदी निकलती हुई उत्तरार्द्ध कच्छ विजय में बहती है। उसमें वहाँ सात हजार नदियाँ सम्मिलित होती हैं। वह उनसे समायुक्त होकर नीचे तिमिसगुफा से होती हुई, वैताढ्य पर्वत को चीरकर दक्षिणार्द्ध कच्छ विजय में जाती है । वहाँ उसमें १४००० नदियाँ मिल जाती हैं, जिनसे युक्त होकर वह दक्षिण में सीता महानदी में मिल जाती है । अपने मूल ओर उद्गम स्थल में इसका प्रवाह भरतक्षेत्र स्थित सिंधु महानदी के तुल्य है यावत् वह दो वनखंडों द्वारा परिवेष्टित है, यहाँ तक का सारा वर्णन पूर्ववत् है ।
हे भगवन्! उत्तरार्द्ध कच्छ विजय के अन्तर्गत ऋषभकूट नामक पर्वत किस स्थान पर कहा
गया है?
Jain Education International
२८१
109--13
हे गौतम! सिंधुकूट के पूर्व में, गंगाकूट के पश्चिम में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण मध्य भाग में, उत्तरार्द्धकच्छ विजय अन्तर्गत ऋषभकूट नामक पर्वत आख्यात हुआ है। वह ऊँचाई में आठ योजन प्रमाण है यावत् राजधानी पर्यन्त समग्र वर्णन पूर्वानुरूप है। अंतर इतना है - उसकी राजधानी उत्तर दिशा में स्थित है।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org