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________________ २६६ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र पढमित्थ णीलवंतो १, बिइओ उत्तरकुरू २ मुणेयव्वो। चंदद्दहोत्थ तइओ ३ एरावय ४ मालवंतो य ॥३॥ एवं वण्णओ अट्ठो पमाणं पलिओवमट्टिइया देवा। भावार्थ - हे भगवन्! उत्तरकुरु के अंतर्गत नीलवान् संज्ञक पर्वत किस स्थान पर आख्यात हुआ है? हे गौतम! यमक पर्वतों के दक्षिणवर्ती अंतिम छोर से ८३४ - योजन के अंतर पर सीता महानदी के ठीक बीच में नीलवान् संज्ञक द्रह आख्यात हुआ है। यह दक्षिण-उत्तर में लंबा तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ा है। जैसा पद्म द्रह का वर्णन आया है, वैसा ही इसका वर्णन है, इतना भेद है - यह दो पद्मवर वेदिकाओं एवं दो वनखंडों द्वारा घिरा हुआ है। वहाँ नीलवान् संज्ञक नागकुमार देव निवास करता है। अवशिष्ट वर्णन पहले की तरह योजनीय है। नीलवान द्रह के पूर्वी-पश्चिमी पार्यों में दस-दस योजन के अंतर पर बीस कांचनक पर्वत हैं। वे सौ-सौ योजन ऊंचे हैं। ' गाथाएं - कांचनक पर्वतों का विस्तार मूल में सौ, बीच में पचहत्तर तथा ऊपर पचास योजन प्रमाण है। उनकी परिधि मूल में तीन सौ सोलह योजन, बीच में दो सौ सैंतीस योजन तथा ऊपर एक सौ अट्ठावन योजन है। नीलवान्, उत्तरकुरु, चन्द्र, ऐरावत तथा माल्यवान् ये पांच द्रह हैं। ॥१-३॥ इन द्रहों का वर्णन नीलवान् द्रह के सदृश है। इन सभी पर एक पल्योपम आयुष्य युक्त देव निवास करते हैं। जंबू पीठ एवं जंबू सुदर्शना (१०७) कहि णं भंते! उत्तरकुराए २ जम्बूपेढे णामं पेढे पण्णत्ते? गोयमा! णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं मंदरस्स० उत्तरेणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं सीथाए महाणईए पुरथिमिल्ले कूले एत्थ णं उत्तरकुराए जम्बूपेढे णामं पेढे पण्णत्ते पंच जोयणसयाई आयामविक्खम्भेणं पण्णरस एक्कासीयाइं जोयणसयाई किंचिविसेसाहियाई परिक्खेवेणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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