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________________ चतुर्थ वक्षस्कार - नीलवान् द्रह २६५ www मोटाई में एक योजन हैं। इन मणिपीठिकाओं में प्रत्येक पर देवच्छंदक-दिव्य आसन हैं। ये लम्बाई-चौड़ाई में दो योजन तथा ऊँचाई में दो योजन से कुछ अधिक हैं, सम्पूर्णतः रत्नमय है। धूप के कुड़छों तक जिन प्रतिमाओं का वर्णन पूर्वानुसार योजनीय है यावत् उपपात सभा आदि अवशिष्ट सभाओं का वर्णन शयनीय, गृह पर्यन्त पूर्वानुरूप है। अभिषेक सभा में बहुत से अभिषेक पात्र अलंकार सभा में आलंकारिक पात्र तथा व्यवसाय सभा में पुस्तक रत्न हैं। यहाँ नंदा पुष्करिणी एवं बलिपीठ पूजा पीठ है। यह दो योजन लम्बा-चौड़ा तथा एक योजन मोटा है। गाथा - उपपात, संकल्प, अभिषेक, विभूषण सभा, अर्चनिका, सुधर्मा सभा में गमन, परिवारणा - तद्-तद् दिशाओं में परिवार स्थापना, ऋद्धि आदि यमक देवों का वर्णन क्रम है।१। नीलवान् पर्वत से चमक पर्वतों का जितना अंतर है, उतनी ही दूरी यमक द्रहों से अन्य द्रहों की है।। नीलवान् द्रह (१०६) कहि णं भंते! उत्तरकुराए २ णीलवंतहहे णामं दहे पण्णत्ते? गोयमा! जमगाणं० दक्खिणिल्लाओ चरिमंताओ अट्ठसए चोत्तीसे चत्तारि य सत्तभाए जोयणस्स अबाहाए सीयाए महाणईए बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं णीलवंतद्दहे णामं दहे पण्णत्ते, दाहिणउत्तरायए पाईणपडीणविच्छिण्णे जहेव पउमद्दहे तहेव वण्णओ णेयव्वो, णाणत्तं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहिं संपरिक्खित्ते, णीलवंते णामं णागकुमारे देवे सेसं तं चेव णेयव्वं, णीलवंतद्दहस्स पुव्वावरे पासे दस २ जोयणाइं अबाहाए एत्थ णं वीसं कंचणगपव्वया पण्णत्ता, एग जोयणसयं उ8 उच्चत्तेणं। गाहाओ - मूलंमि जोयणसयं, पण्णत्तरि जोयणाई मज्झंमि। उवरितले कंचणगा, पण्णासं जोयणा हुंति॥१॥ मूलंमि तिण्णि सोले, सत्तत्तीसाइं दुण्णि मज्झंमि। अट्ठावण्णं च सयं, उवरितले परिरओ होइ॥२॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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