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१०
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र ।
शब्दार्थ - अबाहाए - बाधा रहित।
भावार्थ - हे भगवन्! जंबूद्वीप के एक द्वार से दूसरे द्वार के मध्य अवरोध रहित कितना अंतर है?
हे गौतम! जंबूद्वीप के एक द्वार से दूसरे द्वार का अव्यवहित अंतर उनासी हजार बावन योजन तथा आधे योजन से कुछ कम है।
भरत क्षेत्र का स्थान एवं स्वरूप .
(१०) कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भरहे णामं वासे पण्णत्ते?
गोयमा! चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, दाहिणलवणसमुदस्स उत्तरेणं, पुरथिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भरहे णामं वासे पण्णत्ते-खाणुबहुले, कंटगबहुले, विसमबहुले, दुग्गबहुले, पव्वयबहुले, पवायबहुले, उज्झरबहुले, णिज्झरबहुले, खड्डाबहुले, दरीबहुले, णईबहुले, दहबहुले, रुक्खबहुले, गुच्छबहुले, गुम्मबहुले, लयाबहुले, वल्लीबहुले, अडवीबहुले, सावयबहुले, तणबहुले, तक्करबहुले, डिम्बबहुले, डमरबहुले, दुब्भिक्खबहुले, दुक्कालबहुले, पासंडबहुले, किवणबहुले, वणीमगबहुले, ईतिबहुले, मारिबहुले, कुवुट्टिबहुले, अणावुट्टिबहुले, रायबहुले, रोगबहुले, संकिलेंसबहुले, अभिक्खणं अभिक्खणं संखोहबहुले। पाईणपडीणायए, उदीणदाहिणवित्थिण्णे, उत्तरओ पलियंकसंठाणसंठिए, दाहिणओ धणुपिट्ठसंठिए, तिहा लवणसमुदं पुढे, गंगासिंधूहि महाणईहिं वेयड्ढेण य पव्वएण छब्भागपविभत्ते, जंबुद्दीवदीवणउयसयभागे पंचछव्वीसे जोयणसए छच्च एगूणवीसइभाए जोयणस्स विक्खंभेणं।
भरहस्स णं वासस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं वेयड्ढे णामं पव्वए पण्णत्ते, जे णं भरहं वासं दुहा विभयमाणे २ चिट्टइ, तं जहा - दाहिणड्डभरहं च उत्तरड्डभरहं च।
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