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चतुर्थ वक्षस्कार - महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के कूट
है । वह उनसे आपूर्ण होकर नीचे की ओर जम्बूद्वीप की जगती को चीरती हुई पश्चिमी लवण समुद्र में मिल जाती है । हरिकान्ता महानदी जिस स्थान से उद्गम होती है - निकलती है, वहाँ उसकी चौड़ाई पच्चीस योजन तथा गहराई आधा योजन है । तदनन्तर क्रमशः उसकी मात्रा - प्रमाण बढ़ता जाता है। जब वह समुद्र में मिलती है, तब उसकी चौड़ाई २५० योजन तथा गहराई पांच योजन होती है। वह दोनों और दो पद्मवरवेदिकाओं से तथा दो वनखण्डों से घिरी हुई है। महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के
कूट
(१८)
महाहिमवंते णं भंते! वासहरपव्वए कई कूडा पण्णत्ता ?
गोयमा ! अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तंजहा- सिद्धाययणकूडे १ महाहिमवंतकूडे २ हेमवयकूडे ३ रोहियकूडे ४ हिरिकूडे ५ हरिकंतकूडे ६ हरिवासकूडे ७ वेरुलियकूडे ८, एवं चुल्लहिमवंतकूडाणं जा चेव वत्तव्वया सच्चेव णेयव्वा ।
सेकेणणं भंते! एवं वुच्चइ-महाहिमवंते वासहरपव्वए २?
गोयमा! महाहिमवंते णं वासहरपव्वए चुल्लहिमवंतं वासहरपव्वयं पणिहाय आयामुच्चत्तुव्वेहविक्खंभपरिक्खेवेणं महंततराए चेव दीहतराए चेव, महाहिमवंते य इत्थ देवे महिड्डिए जाव पलिओवमट्ठिइए परिवस .... ।
भावार्थ - हे भगवन्! महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के कितने कूट बतलाए गए हैं?
हे गौतम! महाहिमवान् वर्षधर के १. सिद्धायतन कूट २. महाहिमवान् कूट ३. हैमवत कूट रोहित कूट ५. ही कूट ६. हरिकांत कूट ७. हरिवर्ष कूट तथा ८. वैडूर्यकूट | ये आठ कूटशिखर कहे गए हैं। इनका विस्तृत वर्णन चुल्लहिमवान् कूट के अनुसार जानना चाहिये । हे भगवन्! यह महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के नाम से क्यों पुकारा जाता है ?
लम्बा,
हे गौतम! यह महाहिमवान् वर्षधर पर्वत चुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत की अपेक्षा अधिक ऊँचा, चौड़ा तथा परिधियुक्त है, इसकी अपेक्षा महत्तर विशाल है। इस पर अत्यंत ऋद्धिशाली यावत् पल्योपम स्थितिक महाहिमवान् देव का निवास है । इसलिए यह महाहिमवान् वर्ष पर्वत कहा जाता है।
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