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चतर्थ वक्षस्कार - शब्दापाती वत्त वैतात्य पर्वत
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हे गौतम! यह हैमवत क्षेत्र चुल्लहिमवान् तथा वर्षधर पर्वत इन दोनों के मध्य स्थित है। यह हमेशा स्वर्ण देता है। इस प्रकार स्वर्ण की आभा से हैमवत क्षेत्र नित्य प्रकाशित रहता है। यहाँ अति वैभव सम्पन्न पल्योपमस्थितिक हैमवत संज्ञक देव निवास करता है। . इसी कारण से गौतम! यह हैमवत क्षेत्र इस नाम से पुकारा जाता है।
(६६) कहि णं भंते! जंबुद्दीवे २ महाहिमवंते णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते?
गोयमा! हरिवासस्स दाहिणेणं हेमवयस्स वासस्स उत्तरेणं पुरत्थिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरथिमेणं एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाहिमवंते णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते, पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे पलियंकसंठाणसंठिए दुहा लवणसमुदं पुढे पुरथिमिल्लाए कोडीए जाव पुढे पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुदं पुढे दो जोयणसयाई उड़े उच्चत्तेणं पण्णासं जोयणाई उव्वेहेणं चत्तारि जोयणसहस्साई दोण्णि य दसुत्तरे जोयणसए दस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स विक्खंभेणं, तस्स बाहा पुरथिमपच्चत्थिमेणं णव जोयणसहस्साई दोण्णि य छावत्तरे जोयणसए णव य एगूणवीसइभाए जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं, तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया दुहा लवणसमुदं पुट्ठा पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठा पच्चथिमिल्लाए जाव पुट्ठा तेवण्णं जोयणसहस्साइं णव य एगतीसे जोयणसए छच्च एगूणवीसइभाए जोयणस्स किंचिविसेसाहिए आयामेणं, तस्स धणुं दाहिणेणं सत्तावण्णं जोयणसहस्साइं दोण्णि य तेणउए जोयणसए दस य एगणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं, रुयगसंठाणसंठिए सव्वरयणामए अच्छे० उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेड्याहिं दोहि य वणसंडेहिं संपरिक्खित्ते। महाहिमवंतस्स णं वासहरपव्वयस्स उप्पिं बहुसमरमणिजे भूमिभागे पण्णत्ते जाव णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहि य तणेहि य उवसोभिए जाव आसयंति सयंति य।
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