________________
२३४
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
शब्दार्थ - सव्वत्थसमे - सर्वत्र समतल, बिलपंतियासु - वापिकाएँ।।
भावार्थ - हे भगवन्! हैमवत क्षेत्र में शब्दापाती नामक वृतवैताढ्य पर्वत की स्थिति कहाँ बतलाई गई है?
हे गौतम! यह शब्दापाती वृतवैताढ्य पर्वत रोहिता महानदी के पश्चिम में, रोहितांशा महानदी के पूर्व में तथा हैमवत वर्ष के बिल्कुल मध्य में अवस्थित है। उसकी ऊँचाई और गहराई क्रमशः एक हजार योजन तथा अढाई सौ योजन है। यह पूर्णतः समतल है। पलंग के संस्थान में संस्थित उसको लम्बाई-चौड़ाई एक हजार योजन है। इसकी परिधि ३१६२ योजन से कुछ अधिक है। यह सर्व रत्नमय एवं उज्वल है। यह एक उत्तम, कमलाकार वेदिका तथा एक वनखण्ड द्वारा चारों ओर से घिरा हुआ है। इन दोनों का वर्णन पूर्ववत् कहा गया है।
इस शब्दापाती वृत्तवैताढ्य पर्वत पर बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग है, जिसके बीचों बीच एक विशाल प्रासादावतंसक-उत्तम महल है। इसकी ऊँचाई ६२- योजन तथा लम्बाईचौड़ाई ३१ योजन १ कोस है यावत् सिंहासन पर्यन्त वर्णन पूर्वानुसार जानना चाहिए।
हे भगवन्! यह 'शब्दापाती वृत्तवैताढ्य पर्वत संज्ञक' नाम से क्यों पुकारा जाता है?
हे गौतम! शब्दापाती वृत वैताढ्य पर्वत पर छोटी-छोटी बावड़ियों यावत्. वापिकाओं में बहुत से उत्पल, पद्म हैं, जिनकी प्रभा, वर्ण एवं आभा शब्दापाती के समान है। इसके अलावा महान् ऋद्धिशाली यावत् परम प्रभावशाली पल्योपमस्थितिक शब्दापाती देव निवास करता है। इसके चार हजार सामानिक देव हैं यावत् इसकी राजधानी दूसरे जंबूद्वीप में मंदर पर्वत के दक्षिण में है। (इन्ही सब कारणों से इसका नाम शब्दापाती वृतवैताढ्य पर्वत विश्रुत है)।
(६५)
से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-हेमवए वासे २?
गोयमा!...चुल्लहिमवंतेहिं वासहरपव्वएहिं दुहओ समवगूढे णिच्चं हेमं दलइ २ ता णिच्वं हेमं पगासइ हेमवए य इत्थ देवे महिड्डिए० पलिओवमट्टिइए परिवसइ, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-हेमवए वासे, हेमवए वासे।
शब्दार्थ - समवगूढे - समवस्थित, पगासइ - प्रकाशित करता है। भावार्थ - हे भगवन्! हैमवत क्षेत्र को इस नाम से क्यों जाना जाता है?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org