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________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-सूत्र योग्य, आसयंति - आश्रय लेते हैं, सयंति - सोते हैं, चिटुंति - खड़े होते हैं, तुअति - देह को इधर-ऊधर मोड़ते हैं-अंगड़ाई लेते हैं, ललंति - आनंद लेते हैं, मेहंति - सुरत क्रिया करते हैं, पुरापोराणाणं - पूर्व-पूर्व भवों में, सुपरक्कंताणं- सुंदर रूप में आचरित, कल्लाणाणंकिए हुए, कल्लाणफलवित्तिविसेसं - पुण्यात्मक कर्मों के फलस्वरूप विशेष सुखों का, तणविहूणे - तृणों के शब्द से रहित-अत्यंत प्रशांत। भावार्थ - उस वनखंड में अत्यंत समतल, रमणीय-सुंदर भूमिभाग है। वह किसी मढी हुई ढोलक के ऊपरी भाग-चर्मपुट जैसा सुकोमल यावत् भिन्न-भिन्न प्रकार की पाँच रंगों की मणियों, वनस्पतियों से सुशोभित है। उनके कृष्ण आदि विशिष्ट वर्ण, गंध, रस, स्पर्श एवं शब्द हैं। वहाँ सरोवर, पर्वत, भवन, लता आदि के मंडप तथा पाषाणमय शिलापट्ट हैं। हे गौतम! इन सबका वर्णन अन्य आगमों से ग्राह्य है। ___वहाँ अनेक वानव्यंतर जातीय देव एवं देवियाँ आश्रय लिए रहते हैं, सोते हैं, खड़े होते हैं, बैठते हैं, अंगड़ाई लेते हैं-देह को दायें-बाएँ घुमाते हैं, रमण करते हैं, मनोविनोद करते हैं, क्रीड़ा एवं रतिक्रिया करते हैं। इस प्रकार वे अपने पूर्व-पूर्व भवों में आचरित शुभ, पुण्यमय कर्मों के परिणाम स्वरूप विशिष्ट सुखों का उपभोग करते हैं। ___उस प्राचीर के ऊपर भीतर की ओर स्थित कमलाकार उत्तम वेदिका पर एक वनखंड कहा गया है, जो कुछ कम दो योजन चौड़ा है। उसकी परिधि वेदिका के सदृश है। वह कृष्ण आभायुक्त यावत् सर्वथा निःशब्द-तिनके गिरने जितनी आवाज से भी रहित-अत्यंत प्रशान्त है। जंबद्धीप के भव्य द्वार जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स कइ दारा पण्णत्ता? गोयमा! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा - विजए, वेजयंते, जयंते, अपराजिए। भावार्थ - गौतम स्वामी ने पूछा - हे भगवन्! जंबूद्वीप संज्ञक द्वीप के कितने द्वार बतलाए गए हैं? भगवान् ने कहा - हे गौतम! विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित नामक उसके चार द्वार परिज्ञापित हुए हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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