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________________ २२४ .. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र 242-02-12-02-02-28-12-08-12-02-09-04-02-12-28-12-08-18-10-08-10-19-19-06-08-10-14-10-08-10-08-19-04-02--12-08-12-2-28-08-2 गंगा महानदी जहाँ गिरती है, वहाँ विशाल गंगाप्रपात कुण्ड बतलाया गया है। यह आठ योजन लम्बा चौड़ा है। इसकी परिधि एक सौ नब्बे योजन से कुछ अधिक है। इसकी गहराई दस योजन है, स्वच्छ एवं चिकना है। इसके किनारे रजतमय एवं समतल तट युक्त है। इसका तल वज्ररत्नमय है। इसकी बालू स्वर्ण एवं रजत के शुभ कणों से निर्मित है। इसके तट के निकटवर्ती उभरे हुए प्रदेश वैदूर्य तथा स्फटिक के फलकों से बने हैं। इसके अन्दर प्रवेश करने एवं बाहर निकलने के मार्ग सुखप्रद हैं। इसके घाट विविध मणियों से बंधे हैं। किनारे से भीतर की ओर इसका जल अधिक गहरा और शीतल है। यह कमल पत्रों, कंदों तथा मृणाल-कमलं नालों से ढका हुआ है। बहुत से उत्पल, कुमुद, नलिन, सुभग सौगंधिक, पुण्डरीक, महापुण्डरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र, शतसहस्रपत्र (लाख पत्तों वाला कमल) इन अनेकविध कमलों के प्रफुल्लित केसरों से उपशोभित हैं, व्याप्त हैं। भौरे इन कमलों के पराग का परिभोग करते रहते हैं। जल से परिपूर्ण इस कुण्ड का जल निर्मल, स्वच्छ एवं स्वास्थ्य प्रद है। जल में इधर-उधर विचरण करती मछलियों एवं कछुओं तथा विविध पक्षीवृंद के मधुर उच्च कलरव से वहाँ का वातावरण मन को हरने वाला प्रतीत होता है। यह एक पद्मवर वेदिका एवं वनखंड द्वारा चारों ओर से संपरिवृत है। पद्मवरवेदिका, वनखण्ड एवं कमलों का वर्णन पूर्वानुसार योजनीय है। इस गंगाप्रपात कुण्ड की पूर्व, दक्षिण तथा पश्चिम-इन तीनों दिशाओं में त्रिसोपान प्रतिरूपक-तीन-तीन सीढियाँ बतलाई गई हैं। इन सीढियों का वर्णन इस प्रकार कहा गया है - __ उनकी नेमा-भूमि के ऊपर निकला हुआ भाग वज्ररत्नमय, मूल भाग-प्रतिष्ठापक रिष्टरत्नमय एवं स्तंभ नीलम रत्न निर्मित हैं। इनके फलक स्वर्ण-रजतमय हैं। सूचियाँ लोहिताक्षरत्न निर्मित हैं। इनकी संधियाँ वज्ररत्नमय हैं। इनके आलंबन-उतरते समय आधार देने वाले स्थान तथा आलंबन भुजा विविध प्रकार की मणियों से बने हैं। इन तीनों सीढियों के समक्ष तोरण द्वार बने हैं। विविध रत्नों से सज्जित ये तोरण द्वार अनेक मणियों से निर्मित खंभों पर टिके हैं। इनमें विविध तारों के आकार में मोती उपचित हैं-जड़े हैं। इन तोरण द्वारों पर वृक, वृषभ, अश्व, मनुष्य, मकर, खग, सर्प, किन्नर, रुरु जातीय मृग, शरभ, चंवरी गाय, हाथी, वनलता, पद्मलता आदि के चित्र अंकित हैं। स्तंभोदगत वज्ररत्नमय वेदिकाएं मन को हरने वाली हैं। इन पर बने हुए विद्याधर युगल एक समान आकार की कठपुतलियों की तरह संचरणशील प्रतीत होते हैं। इनसे निकली हजारों किरणों से ये सुशोभित हैं, देदीप्यमान एवं चमचमाते हुए तोरण द्वार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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