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चतुर्थ वक्षस्कार - पद्मद्रह
२१५ **-*-*-*-*-*-*-*-*-*---*---08-28-08-28-10-19-8-10-04-08-10-10-28-12-20-0-0-14-02--00-00-00-00-00-
भावार्थ - हे भगवन्! जंबूद्वीप में चुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत कहां बतलाया गया है?
उत्तर - हे गौतम! जम्बूद्वीप के अंतर्गत चुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत हैमवत क्षेत्र के दक्षिण में, भरत क्षेत्र के उत्तर में, पूर्ववर्ती लवण समुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमवर्ती लवण समुद्र के पूर्व में कहा गया है। यह पूर्व-पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर दक्षिण में चौड़ा है। वह अपने पूर्वी किनारे से पूर्वी लवण समुद्र को तथा पश्चिमी किनारे से पश्चिमी लवण समुद्र को संस्पर्श करता है अर्थात् इसके दोनों ओर लवण समुद्र है। इसकी ऊँचाई सौ योजन, गहराई पच्चीस योजन तथा चौड़ाई १०५२१० योजन है।
इसकी बाहा पूर्व-पश्चिम ५३५० योजन तथा उत्तरवर्ती जीवा पूर्व पश्चिम लम्बी है यावत् दोनों ओर लवण समुद्र को स्पर्श करते हुए २४६३२ योजन एवं आधे योजन से कुछ कम लम्बी है। इसका दक्षिणवर्ती धनुष्य पृष्ट २५२३०० योजन है। यह परिधि की अपेक्षा से है। यह रुचक संज्ञक आभूषण के संस्थान में संस्थित है, सर्व स्वर्णमय, उज्ज्वल, चिकना यावत् चित्ताकर्षक है। यह दोनों ओर दो पद्मवर वेदिकाओं एवं दो वनखण्डों से घिरा हुआ है। इनका प्रमाण विषयक वर्णन पूर्वानुसार योजनीय है।
चुल्लंहिमवान् वर्षधर पर्वत के ऊपर बहुत समतल एवं सुंदर भूमिभाग बतलाया गया है। यह मुरज या ढोलक के उपरितन चर्मनद्ध के सदृश है यावत् बहुत से वाणव्यंतर देव एवं देवियाँ विश्राम करते हैं यावत् सुखपूर्वक विचरण करते हैं।
पद्मद्रह
(९०) _तस्स णं बहुसमरमणिजस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए इत्थ णं इक्के महं पउमद्दहे णामं दहे पण्णत्ते, पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे इक्कं जोयणसहस्सं आयामेणं पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं दस जोयणाई उव्वेहेणं अच्छे सण्हे रययामयकूले जाव पासाईए जाव पडिरूवेत्ति। - से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते वेइया वणसंडवण्णओ भाणियव्वोत्ति।
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