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________________ २०८ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र रत्नों एवं निधियों के उत्पति स्थान भरहस्स रण्णो चक्करयणे १ दंडरयणे २ असिरयणे ३ छसरयणे ४ एए णं चत्तारि एगिदियरयणा आउहघरसालाए समुप्पण्णा, चम्मरयणे १ मणिरयणे २ कागणिरयणे ३ णव य महाणिहिओ एए णं सिरिघरंसि समुप्पण्णा, सेणावइरयणे १ गाहावइरयणे २ वहइरयणे ३ पुरोहियरयणे ४ एए णं चत्तारि मणुयरयणा विणीयाए रायहाणीए समुप्पण्णा, आसरयणे १ हत्थिरयणे २ एए णं दुवे पंचिंदियरयणा वेयह गिरिपायमूले समुप्पण्णा, सुभद्दा इत्थीरयणे उत्तरिल्लाए विजाहरसेढीए समुप्पण्णे। शब्दार्थ - सिरिघरंसि - भाण्डागार, समुप्पण्णे - समुत्पन्न हुए। भावार्थ - राजा भरत के शस्त्रागार में चक्ररत्न, दण्डरत्न, असिरत्न तथा छत्ररत्न - ये चार एकेन्द्रिय रत्न उत्पन्न हुए। चर्मरत्न, मणिरत्न, काकणी रत्न तथा नौ महानिधियों ये श्रीगृह. (भाण्डागार) में उत्पन्न हुए। ___सेनापति रत्न, गाथापति रत्न, वर्द्धकि रत्न तथा पुरोहित रत्न ये चार मनुष्य रत्न विनीता राजधानी में उत्पन्न हुए। दो पंचेन्द्रिय रत्न : अश्वरत्न तथा हस्तिरत्न, वैताठ्य पर्वत की तलहटी में उत्पन्न हुए। उत्तर विद्याधर श्रेणी में सुभद्रा नामक स्त्रीरत्न उत्पन्न हुआ। विपुल ऐश्वर्य एवं सुखोपभोगमय विशाल राज्य (८६) तए णं से भरहे राया चउदसण्हं रयणाणं णवण्हं महाणिहीणं सोलसण्हं देवसाहस्सीणं बत्तीसाए रायसहस्साणं बत्तीसाए उडुकल्लाणियासहस्साणं बत्तीसाए जणवयकल्लाणियासहस्साणं बत्तीसाए बत्तीसइबद्धाणं णाडगसहस्साणं तिण्हं सट्ठीणं सूयारसयाणं अट्ठारसण्हं सेणिप्पसेणीणं चउरासीईए आससयसहस्साणं चउरासीईए दंतिसयसहस्साणं चउरासीईए रहसयसहस्साणं छण्णउईए मणुस्सकोडीणं बावत्तरीए पुरवरसहस्साणं बत्तीसाए जणवयसहस्साणं छण्णउईए. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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