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(२)
ते काणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई णामं अणगारे गोयमगोत्तेणं सत्तुस्सेहे, सम- चउरंस - संठाणे - जाव ( तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, वंदइ, णमंसइ, वंदित्ता, णमंसित्ता) एवं वयासी । शब्दार्थ - जेट्टे - ज्येष्ठ-बड़े, अंतेवासी - शिष्य, सत्तुस्सेहे - सात हाथ ऊँचे, समचउरंस - संठाणे - समचतुरस्र संस्थान युक्त ।
भावार्थ उस काल, उस समय भगवान् महावीर स्वामी के ज्येष्ठ शिष्य, गौतम गोत्रोत्पन्न इन्द्रभूति ने, जिनका शरीर सात हाथ ऊँचा था, जिनके देह के चारों अंश - भाग सुसंगत, परस्पर समान अनुपात युक्त, संतुलित रचना युक्त थे यावत् उत्तमोत्तम गुणयुक्त थे, (तीन बार आदक्षिण - प्रदक्षिणा पूर्वक वंदन, नमन कर ) भगवान् से निवेदन किया ।
जंबूद्वीप का स्वरूप (३)
प्रज्ञप्ति सू
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कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे १? केमहालए णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे २? किंसंठिए णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे ३? किमायारभावपडोयारे णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे ४, पण्णत्ते ?
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गोयमा! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्धंतराए १, सव्वखुड्डाए २, वट्टे, तेल्लापूयसंठाणसंठिए वट्टे, रहचक्कवालसंठाणसंठिए वट्टे, पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साइं सोलस सहस्साइं दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसए तिण्णि य कोसे अट्ठावीसं च धणुस तेरस अंगुलाई अद्धंगुलं च किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ।
शब्दार्थ - कहि - कहाँ, केमहालए कितना विशाल, आयारभावपडोयारे - आकारस्वरूप युक्त, सव्वब्भंतराए - सबके आभ्यंतर बीच में, सव्वखुड्डाए - सबसे छोटा, वट्टे गोल, तेल्लापूर - तेल में तले हुए पूए, रहचक्कवाल रथ का पहिया, पुक्खरकण्णिया पद्मकर्णिका, आयाम - लम्बाई, विक्खंभ - विष्कंभ-चौड़ाई, परिक्खेवेणं - परिक्षेप-परिधि, पण्णत्ते - बतलाई गई है।
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