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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र
पायवडिया पादपतिता - पैरों में गिर जाओ, वच्छला
णवणिहि - नवनिधि, महिलिया - नारियाँ, भुज्जो - भुज्जो - बार-बार ।
भावार्थ - जब राजा भरत को इस प्रकार रहते हुए सात दिन-रात बीत गए तब उसके मन में ऐसा चिंतन, विचार, संकल्प उत्पन्न हुआ वह कौन मौत को चाहने वाला, अशुभ लक्षण युक्त यावत् लज्जा एवं शोभा से रहित पुरुष है, जो मेरे ऐसे प्रभाव के होते हुए भी यावत् मेरी सेना पर जुआ, मूसल तथा मुट्ठी के सदृश मोटी जल धारा द्वारा यावत् वर्षा कर रहा है।
राजा के मन में ऐसा चिंतन, भाव, संकल्प उत्पन्न हुआ है, यह जानकर सोलह सहस्त्र देव युद्ध हेतु सन्नद्ध हुए। उन्होंने शरीर पर कवच धारण किए यावत् शस्त्रास्त्र गृहीत किए तथा जहाँ मेघमुख नामक नागकुमार थे, वहाँ आए और उनसे बोले अरे मौत को चाहने वालों यावत् निर्लज्जो! श्रीविहीनो ! क्या तुम नहीं जानते, चातुरंत चक्रवर्ती राजा भरत महान् ऋद्धिशाली यावत् उसे कोई भी पराजित करने में या रोक पाने में असमर्थ है। ऐसा होते हुए भी राजा भरत की सैन्य छावनी पर युग, मूसल और मुट्ठी की ज्यों जलधाराओं के साथ सात दिन-रात से पानी बरसाते जा रहे हो ।
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वात्सल्य, वसु
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जल्दी ही यहाँ से हट जाओ अथवा अपने जीवन को बीता हुआ समझ लो । अब तुम बच नहीं पाओगे।
धन-वैभव,
इस प्रकार कहने पर वे मेघमुख नागकुमार भयभीत, उद्विग्न हो गए और मेघों के समूहों को समेट लिया। इसके पश्चात् जहाँ आपात चिलात थे, वहाँ आए और उनसे बोले - देवानुप्रियो ! राजा भरत अत्यधिक वैभव और प्रभावयुक्त है यावत् वह किसी देव द्वारा यावत् अग्नि प्रयोग द्वारा यावत् रोका नहीं जा सकता, प्रतिषेधित नहीं किया जा सकता। फिर भी हमने तुम्हारा प्र करने हेतु राजा भरत के लिए उपसर्ग उपस्थित किए।
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देवानुप्रियो ! अब तुम जाओ, स्नान, नित्य नैमित्तिक बलि, प्रायश्चित्त आदि मंगलोपचार संपादित करो, गीले वस्त्र धारण किए हुए, लटकते हुए वस्त्रों को पकड़े हुए, उत्तम रत्न लेकर, कर बद्ध होकर राजा भरत के चरणों में गिर जाओ, उसकी शरण में जाओ । चरणों में पड़े हुए लोगों के प्रति उत्तम पुरुष वात्सल्य भाव युक्त होते हैं। तुम राजा के समीप जाने में भय न करो। ऐसा कह वे देव जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में चले गए।
तब मेघमुख नागकुमारों द्वारा यों निर्देशित किए जाने पर आपात किरात उठे, स्नान किया, बलि-प्रायश्चित आदि नित्य - नैमित्तिक - मंगलोपचार संपादित कर गीले वस्त्र पहने हुए, वस्त्रों के
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