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॥ णमो सिद्धाणं॥
जम्बुद्धीपप्रज्ञप्ति सूत्र
(मूल पाठ, कठिन शब्दार्थ, भावार्थ एवं विवेचन सहित)
पठमो वक्रवारी - प्रथम वक्षस्कार
____णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं,
णमो लोए सव्व साहूणं। तेणं कालेणं तेणं समएणं मिहिला णामं णयरी होत्था, रिद्धस्थिमियसमिद्धा, वण्णओ। तीसे णं मिहिलाए णयरीए बहिया उत्तर-पुरथिमे दिसीभाए एत्थ णं माणिभद्दे णामं चेइए होत्था, वण्णओ। जियसत्तू राया, धारिणी देवी, वण्णओ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे, परिसा णिग्गया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया। - शब्दार्थ- रिद्ध - रिद्धि युक्त, थिमिय - स्थिति-सुरक्षा युक्त, समिद्धा - वैभव संपन्न।
भावार्थ - अरहंत भगवंतों, सिद्ध भगवंतों, आचार्य भगवंतों, उपाध्याय भगवंतों तथा साधु भगवंतों को नमस्कार हो। उस काल, उस समय मिथिला नामक नगरी थी। वह अत्यधिक संपत्ति, सुरक्षा और ऋद्धि आदि से युक्त थी। नगरी का वर्णन औपपातिक आदि आगमों के अनुसार ग्राह्य है। उस मिथिला नगरी के बहिर्भाग में-ईशान कोण में मणिभद्र नामक चैत्य अवस्थित था। औपपातिक आदि आगमों में आया हुआ चैत्य वर्णन यहाँ योजनीय है।
मिथिला के राजा का नाम जितशत्रु तथा महारानी का नाम धारिणी था। राजा और महारानी का वर्णन औपपातिक सूत्र आदि के अनुसार जानना चाहिए।
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