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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
आउडेइ, तए णं तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सुसेणसेणावइणा दंडरयणेणं महया २ सद्देणं तिक्खुत्तो आउडिया समाणा महया २ सद्देणं कोंचारवं करेमाणा सरसरस्स सगाई २ ठाणाई पच्चोसक्कित्था, तए णं से सुसेणे सेणावई तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेइ २ ता जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ २ ता जाव भरहं रायं करयलपरिग्गहियं जएणं विजएणं वद्धावेइ २ ता एवं वयासी - विहाडिया णं देवाणुप्पिया! तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा एयण्णं देवाणुप्पियाणं पियं णिवेएमो पियं मे भवउ। .
तए णं से भरहे राया सुसेणस्स सेणावइस्स अंतिए एयमढ़े सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठचित्तमाणंदिए जाव हियए सुसेणं सेणावई सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारित्ता सम्माणित्ता कोडुंबिय-पुरिसे सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुंप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह हयगयरहपवर तहेव जाव अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवरं णरवई दुरूढे।
शब्दार्थ - दुवारस्स - द्वारों के, कवाडे - कपाटों को, विहाडेइ - विघाटित करोखोलो, पावेसाइ - प्रवेश्य-राजसभा आदि में धारण करने योग्य, आसत्तोसत्त - ऊपर से नीचे तक, कयाग्गह - कचग्रह-केशों को पकड़ना, पंचलइयं - पाँच शाखाओं से युक्त, तिक्खुत्तोतीन बार।
भावार्थ - राजा भरत ने किसी एक दिन सेनापति सुषेण को बुलाया और कहा - देवानुप्रिय! तमिस्रा गुफा के दक्षिणी द्वार के दोनों कपाटों का उद्घाटन करो-उन्हें खोलो। वैसा कर मुझे अवगत कराओ।
राजा भरत द्वारा इस प्रकार आदेश दिए जाने पर सेनापति सुषेण बड़ा ही हर्षित, परितुष्ट और मन में प्रसन्न हुआ यावत् अंजलिबद्ध हाथों को मस्तक से लगाया और मस्तक पर घुमाते हुए यावत् राजा के आदेश को अंगीकार किया और राजा के यहाँ से रवाना होकर अपने आवासग्रह में स्थित पौषधशाला में आया। वहाँ डाभ का बिछौना लगाया यावत् कृतमाल देव को उद्दिष्ट कर पौषधशाला में ब्रह्मचर्य पूर्वक तेले की तपस्या स्वीकार की, पौषध स्वीकार किया। तेले की तपस्या पूर्ण हो जाने पर पौषधशाला से प्रतिनिष्क्रांत होकर, जहाँ स्नानघर था,
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