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प्रज्ञप्ति सूत्र
महामहिमाए णिव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ २ ता अंतलिक्खपडिवणे जाव पूरंते चेव अंबरतलं उत्तरपच्चत्थिमं दिसिं पभासतित्थाभिमु पया यावि होत्था ।
शब्दार्थ - गमनलहु - शीघ्रता से चलने वाला, णिवाय - निर्वात वायुरहित, तिणिसतिनिश - काष्ठ विशेष, कूबरं - जूआ, पघसिय प्रघर्षित - दृढता से बंधी हुई, पसिय - सटी हुई, हरि - वासुदेव, पहरण - रयण प्रहरण रत्न-शस्त्र रत्न, कंकटय - कवच, णिजुत्त - स्थापित, खेड बगुले, तणसोल्लिय ढाल, बलाग मल्लिका, तोंड जुआ-युग, वरायरिय उत्तम शिल्पाचार्यों द्वारा, सारहि - सारथि, अउज्झं - किसी के द्वारा सामना न
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किए जाने योग्य, सोयामणि - सौदामिनि, पारेवय - कबूतर, उट्ठित - उगते हुए ।
भावार्थ वह रथ भूमि पर तीव्र गति से चलने वाला, अनेक उत्तमोत्तम लक्षणयुक्त था। हिमालय पर्वत की निर्वात कंदराओं में संवर्द्धित विविध प्रकार के तिनिश संज्ञक, रथ निर्माणोचित वृक्षों के काष्ठ से वह निर्मित था । उसका जूआ जंबूनद स्वर्ण से निर्मित था । उसके आरे सोने की ताड़ियों से बने थे। वह पुलक, वरेन्द्र, नीलसासक, मूंगा, स्फटिक, उत्तम रत्न, लेष्टु संज्ञक रत्न, विद्रुम से विभूषित था। उसके अड़तालीस आरे थे, उनके दोनों तुंब स्वर्ण निर्मित पट्टों से मजबूती से बंधे थे। उसका पीछे का भाग विशेष रूप बंधी हुई, सटी हुई पट्टियों से सुनिष्पन्न था। अत्यंत सुंदर लौह श्रृंखला तथा चर्म रज्जु से उसके अवयव परिबद्ध थे । उसके दोनों पहिए वासुदेव के चक्ररत्न के सदृश थे। उसकी जाली चंद्रकांत, इन्द्रनील तथा सासक रत्नों से बनी हुई एवं सजी हुई थी। उसकी धुरा सुंदर, विस्तृत तथा एक समान थी। वह उत्तम नगर की ज्यों गुप्त, सुरक्षित, सुदृढ़ था । उसके अश्वों के गले में पड़ी रस्सी तपनीय स्वर्ण निर्मित थी । उसमें कवच रखे थे। वह अस्त्रों से युक्त था। ढाल, विशेष बाण, धनुष, विशेष प्रकार की तलवारें ( मण्डलाग्र), त्रिशूल, भाले, तोमर, सैकड़ों बाणों से युक्त बत्तीस प्रकार के तरकसों से वह सुशोभित था। उस पर स्वर्ण एवं रत्नमय चित्रांकन था । हलीमुख, बगुले, गजदंत, चंद्रमा, मोती, मल्लिका, कुंद, कुटज, निर्गुण्डी तथा सिंदुबार, कंदल के फूल, उत्तम फेनराशि, हार, कास के सदृश श्वेत तथा देव, मन एवं वायु की गति से भी तीव्र, चपल, शीघ्र गमनशील, चारों ओर चँवरों एवं स्वर्णनिर्मित आभूषणों से विभूषित चार अश्व उसमें जुते थे । रथ पर छत्र तथा ध्वजाएँ घंटियाँ एवं पताकाएँ लगी थीं। उसका संधि योजन सुंदर रूप में निष्पादित था । समीचीन
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