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तृतीय वक्षस्कार - भरत का मागध तीर्थ की दिशा में प्रस्थान
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देवानुप्रियो! अश्व, गज, रथ एवं श्रेष्ठ योद्धाओं से विभूषित चतुरंगिणी सेना को शीघ्र ही तैयार करो। चारों ओर घंटाओं से निनादित चातुर्घण्ट अश्व रथ को तैयार करो। यों कहकर राजा स्नानगृह में प्रविष्ट हुआ यावत् विशाल मेघ से निकलते हुए चन्द्र के सदृश देखने में सौम्य राजा स्नानगृह से बाहर निकला। बाहर निकलकर अश्व, रथ, गज, अन्यान्य, उत्तम वाहन यावत् सेना से सुशोभित (परिकीर्तित) वह राजा बाहरी सभा भवन में आया। जहाँ चातुर्घण्ट अश्वरथ था, वहाँ आया, उस पर आरूढ हुआ। .
(५८) तए णं से भरहे राया चाउग्घंटं आसरहं दुरूढे समाणे हयगयरहपवरजोहकलियाए सद्धिं संपरिवुडे महयाभडचडगरपहगरवंदपरिक्खित्ते चक्करयणदेसियमग्गे अणेगरायवरसहस्साणुयायमग्गे महया उक्किट्ठ-सीहणायबोलकलकल-रवेणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयं पिव करेमाणे पुरत्थिमदिसाभिमुहे मागहतित्थेणं लवणसमुदं ओगाहइ जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला।
तए णं से भरहे राया तुरगे णिगिण्हइ २ त्ता रहं ठवेइ २ ता धणुं परामुसइ, तए णं तं अइरुग्गयबालचंद-इंदधणुसंकासं वरमहिसदरियदप्पियदढघणसिंगरइयसारं उरगबरपवरगवलपवर-परहुयभमरकुलणीलिणिद्धधंतधोयपढें णिउणोविय-मिसिमिसिंत-मणिरयण-घंटियाजालपरिक्खित्तं तडितरुणकिरणतवणिज़बद्धचिंधं ददरमलयगिरिसिहरकेसरचामरवालद्धचंदचिंधं कालहरियरत्तपीयसुक्किल्लबहुण्हारुणिसंपिणद्धजीवं जीवियंतकरणं चलजीवं धणुं गहिऊण से णरवई उसुं च वरवइरकोडियं वइरसारतोंडं कंचणमणिकणगरयणधोइट्ठसुकयपुंखं अणेगमणिरयणविविह-सुविरइयणामचिंधं वइसाहं ठाइऊण ठाणं आययकण्णाययं च काऊण उसुमुदारं इमाई वयणाई तत्थ भाणिअ से णरवई गाहाओ- हंदि सुणंतु भवंतो बाहिरओ खलु सरस्स जे देवा।
णागासुरा सुवण्णा तेसिं खु णमो पणिवयामि॥१॥
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