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________________ . १२० जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र भावार्थ - तदनंतर राजा भरत स्नानघर की ओर आया, उसमें प्रविष्ट हुआ। वह स्नानघर मोतियों की अनेक लड़ों से सजे हुए झरोखों के कारण बड़ा ही रमणीय था। उसका आंगन तरह-तरह की मणियों एवं रत्नों से जड़ा था। उसमें सुंदर स्नान मंडप था। स्नान मंडप में तरहतरह के चित्रों के रूप में रचित मणियों तथा रत्नों से सुशोभित स्नानपीठ था। राजा सुखपूर्वक उस पर बैठा। उसने शुभ, सुगंधित, पुष्पमिश्रित, शुद्धजल द्वारा उत्तम, आनंदप्रद, श्रेष्ठ मार्जनविधि से स्नान किया। नहाने के पश्चात् राजा ने मंगलोपचार के रूप में सैकड़ों विधि-विधान संपादित किए। रौंएदार, मुलायम काषाय वस्त्र से शरीर का प्रोंछन किया। आर्द्र, सुगंधित गोरोचन तथा चंदन का अपने शरीर पर लेप किया। अहत-अदूषित (चूहों आदि द्वारा नहीं कुतरे हुए), बहुमूल्य, उत्तम वस्त्र समीचीन रूप में धारण किए। पवित्र माला धारण कर केशर आदि का लेप किया। मणियों से जड़े हुए सोने के गहने धारण किए। अठारह लड़ियों के हार, नौ लड़ों के अर्द्धहार तथा तीन लड़ों के हार एवं लंबे लटकते कटि सूत्र से भलीभांति शोभित किया। ___गले में आभूषण पहने, अंगुलियों में अंगूठियाँ धारण की। इस प्रकार अपने मनोज्ञ अंगों . को मनोहर आभूषणों से अलंकृत किया। भिन्न-भिन्न प्रकार की मणियों से मढे हुए कंकण पहने भुजबंद बांधे। यों राजा की शोभा और अधिक वृद्धिंगत हुई। कुण्डलों से राजा का मुख उद्योतमय था। मुकुट से मस्तक दीप्यमान था। हारों से आवृत उसका वक्षस्थल सुंदर प्रतीत हो रहा था। राजा ने एक लंबे लटकते हुए वस्त्र को उत्तरीय के रूप में धारण किया। स्वर्ण की अंगूठियाँ धारण करने के कारण राजा की अंगुलियाँ पीतवर्ण की सी प्रतीत हो रही थीं। सुयोग्य कारीगरों द्वारा अनेक प्रकार की मणियों, स्वर्ण एवं रत्नों के मेल से सुनिर्मित, महापुरुषों द्वारा धारण किए जाने योग्य, विशिष्ट, प्रशस्त, उत्तम संरचना युक्त विजयपट्ट-कमरबंद या विजयकंकण धारण किया। अधिक क्या कहा जाय? इस प्रकार अलंकारों से सुशोभित, विशिष्ट वेशभूषा से सज्जित राजा कल्पवृक्ष जैसा प्रतीत होता था। अपने ऊपर ताने गए कोरंट पुष्पों की मालाओं से युक्त छत्र यावत् अपने दोनों ओर डुलाए जाते चार चंवर देखते ही लोगों द्वारा किए जाते जय सूचक शब्दों के साथ राजा अनेक गणनायकों, दंडनायकों के साथ यावत् दूतों, संधिपालों से घिरा हुआ, उज्ज्वल, विशाल मेघ से निकलते चंद्र के समान प्रियदर्शन-देखने में प्रीतिकर यावत् राजा धूप, पुष्प, माला तथा सुगंधित द्रव्यों को हाथ में लिए हुए स्नानागार से बाहर निकला और जहाँ शस्त्रागार और चक्ररत्न था, वहाँ आया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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