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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
राजधानी की सुसज्जा ..
(५४) तए णं से भरहे राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २ ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! विणीयं रायहाणिं सब्भिंतरबाहिरियं आसियसंमजियसित्तसुइगरत्यंतरवीहियं मंचाइमंचकलियं णाणाविहरागवसणऊसियझयपडागाइपडागमंडियं लाउल्लोइयमहियं गोसीससरसरत्तचंदणकलसं चंदणघडसुकय. जाव गंधुधुयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह कारवेह, करेत्ता कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह। ___तए णं ते कोडुंबियपुरिसा भरहेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ट० करयल जाव एवं सामित्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति २ त्ता भरहस्स० अंतियाओ पडिणिक्खमंति २ ता विणीयं रायहाणिं जाव करेत्ता कारवेत्ता य तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति।
शब्दार्थ - सन्भिंतरबाहिरियं - भीतर और बाहर के भागों को, आसिय - आसिक्तछिड़का, रत्थ - सड़क, वीहियं - गली।
भावार्थ - तदनंतर राजा भरत ने कौटुंबिक पुरुषों-व्यवस्था करने वाले अधिकारियों को बुलाया और उनसे कहा - देवानुप्रियो! शीघ्र ही विनीता नगरी के भीतर और बाहर के भाग की सफाई कराओ। उसे जल से धुलवा कर सम्मार्जित कर, सुगंधित जल से संसिक्त कराओसुगंधित जल का उस पर छिड़काव करो। मंच-अतिमंच-विशिष्ट ऊँचे मंच तैयार कराओ। विविध रंगों से रंगी हुई ध्वजाओं, पताकाओं से मंच को सुशोभित करो। धरती पर गोबर का लेप कराओ, गोशीर्ष (गोरोचन) तथा सरस, लाल चंदन से कलशों को चर्चित कराओ। चंदन चर्चित मंगल घटों यावत् सुगंधित धुएँ के प्राचुर्य से वहाँ गोल-गोल धूम के छल्ले से बनते दिखाई दें, ऐसा सजाओ। कार्य हो जाने पर मुझे सूचना दो।
राजा भरत द्वारा इस प्रकार आदिष्ट किए जाने पर कौटुंबिक पुरुष अत्यंत हर्षित, प्रसन्न हुए, हाथ जोड़कर यावत् “स्वामी की जैसी आज्ञा' यों विनयपूर्वक इसे शिरोधार्य किया। राजा
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