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क्रं. विषय
पृष्ठ | क्रं. विषय ३३. वर्द्धकि रत्न का बहुमुखी | ५४. सर्वज्ञत्व का प्राकट्य २१० . वास्तु नैपुण्य
१३७ | ५५. भरत क्षेत्र का नामकरण २१३ ३४. प्रभास तीर्थ विजय
चतुर्थ वक्षस्कार २१४-3३२ ३५. सिंधुदेवी पर विजय
| ५६. चुल्लहिमवान् पर्वत ३६. वैताढ्य विजय
५७. पद्मद्रह
२१५ ३७. तमिस्रा विजय ३८. सेनापति द्वारा निष्कुट प्रदेश के
५८. चुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत के शिखर २२७ विजय की तैयारी
५६. हेमवत क्षेत्र
..२३१ ३६. चर्मरत्न द्वारा सिंधु महानदी पार १४६
६०. शब्दापाती वृत वैताढ्य पर्वत . २३३ ४०. सेनापति द्वारा विशाल विजयाभियान १५०
६१. महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के कूट २४१ ४१. तमिस्रागुहा : दक्षिणी कपाटोद्घाटन १५२
६२. हरिवर्ष क्षेत्र
.. २४२ ४२. तमिस्रागुहा में काकणी रत्न
६३. निषध वर्षधर पर्वत
२४४ द्वारा मंडल आलेखन
| ६४. महाविदेह : स्वरूप : संज्ञा २४६ ४३. उन्मग्नजला निमग्नजला
६५. गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत २५२ महानदियाँ उत्तरण
६६. उत्तरकुरु ४४. आपात किरातों द्वारा भीषण संघर्ष
६७. यमक संज्ञक पर्वत द्वय ४५. मेघमुख देवों का उपसर्ग १६७
६८. नीलवान् द्रह
२६५ ४६. छत्ररत्न द्वारा उपसर्ग से रक्षा
६६. जंबू पीठ एवं जंबू सुदर्शना २६६ ४७. रत्न चतुष्ट्य द्वारा सुरक्षा
७०. माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत ४८. विद्याधरराज नमि विनमि पर विजय
७१. हरिसहकूट ४६. खण्डप्रपात विजय
७२. कच्छ विजय .
२७६ ५०. राजधानी में प्रत्यार्वतन
|७३. चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत ५१. राजतिलक
७४. सुकच्छ विजय ५२. रत्नों एवं निधियों के उत्पत्ति स्थान २०८ | ७५. महाकच्छ विजय
२८५ ५३. विपुल ऐश्वर्य एवं सुखोपभोगमय ७६. पद्मकूट वक्षस्कार पर्वत २८६ विशाल राज्य २०६ | ७७. कच्छकावती विजय
२८७
२५५
१५८
२५६
पर्ष १६०
२७३
१७२
२७५
। १८१
१८४
२८२
१३१
२८४
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