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________________ द्वितीय वक्षस्कार - उत्सर्पिणी : अवशेष आरक १११ तीसे णं भंते! समाए पढमे तिभाए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे भविस्सइ? - गोयमा! बहुसमरमणिज्जे जाव भविस्सइ, मणुयाणं जा चेव ओसप्पिणीए पच्छिमे तिभागे वत्तव्वया सा भाणियव्वा, कुलगरवज्जा उसभसामिवज्जा, अण्णे पदंति-तीसे णं समाए पढमे तिभाए इमे पण्णरस कुलगरा समुप्पजिस्संति, तंजहासुमई जाव उसभे, सेसं तं चेव, दंडणीईओ पडिलोमाओ णेयव्वाओ, तीसे णं समाए पढमे तिभाए रायधम्मे जाव धम्मचरणे य वोच्छिजिस्सइ, तीसे णं समाए मज्झिमपच्छिमेसु तिभागेसु जा पढममज्झिमेसु वत्तव्वया ओसप्पिणीए सा भाणियव्वा, सुसमा तहेव सुसमासुसमावि तहेव जाव छव्विहा मणुस्सा अणुसज्जिस्संति जाव सणिच्चारी। ॥ बीओ ववखारो समत्तो।। शब्दार्थ - वोच्छिजिस्सइ - विच्छिन्न हो जायेंगे, अणुसजिस्संति - अनुसरण करेंगे, सणिच्चारी - तदनुसार चलने वाला। भावार्थ - हे भगवन्! उस काल में-उत्सर्पिणी काल के दुःषमा संज्ञक दूसरे आरक में भरतक्षेत्र का आकार-प्रकार कैसा होगा? . हे गौतम! उस समय भूमिभाग अत्यंत समतल एवं रमणीय होगा यावत् वह कृत्रिमअकृत्रिम रत्नों से सुशोभित होगा। ____ हे भगवन्! उस समय मानवों का आकार या स्वरूप किस प्रकार का होगा? - हे गौतम! मानव छह प्रकार के संहनन एवं संस्थान युक्त होंगे। ऊँचाई में अनेक हाथसात हाथ के होंगे। उनका कम से कम आयुष्य अन्तर्मुहूर्त का तथा अधिकतम एक सौ से कुछ अधिक वर्ष का होगा। अपने आयुष्य का भोग कर उनमें से कतिपय नरकगति में यावत् कुछ देवगति में जायेंगे किन्तु सिद्धत्व प्राप्त नहीं करेंगे। __ हे आयुष्यमन् श्रमण गौतम! उस आरक के इक्कीस सहस्र वर्ष व्यतीत हो जाने पर उत्सर्पिणी काल का दुःषम-सुषमा नामक तीसरा आरक शुरू होगा। उसमें अनंत वर्ण पर्याय यावत् क्रमशः उत्तरोत्तर परिवर्धनशील होंगे। हे भगवन्! उस काल में भरतक्षेत्र का स्वरूप कैसा होगा? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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