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वर्ग ३ अध्ययन ८
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गजसुकुमाल अनगार द्वारा भिक्षु प्रतिमा ग्रहण
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राजगद्दी पर बैठकर भी उन्होंने अपनी इच्छानुसार दीक्षा सामग्री मंगाई । भगवती सूत्र शतक ११ उद्देशक ११ में वर्णित महाबल के समान गजसुकुमाल का दीक्षा समारोह हुआ। आज्ञा में रह कर समिति गुप्ति पूर्वक महाव्रतों से आत्मा को संयमित करने लगे। संवर और निर्जरा से इन्द्रियों एवं मन को वश में रखने वाले हो गए ।
गृहस्थ अवस्था मृत्यु को प्राप्त हुई और संयमी अनगार के रूप में उन्होंने नया जन्म पाया। अब वे पांचों समिति और तीनों गुप्ति युक्त हुए । ब्रह्मचर्य आदि पांचों महाव्रतों के सुरक्षा कवच में आ गए।
गजसुकुमाल अनगार द्वारा भिक्षु प्रतिमा ग्रहण (३६)
तए णं से गयसुकुमाले अणगारे जं चेव दिवसं पव्वइए तस्सेव दिवसस पुव्वावरण्हकालसमयंसि जेणेव अरहा अरिट्ठणेमि तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिट्ठमिं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे महाकालंसि सुसाणंसि एगराइयं महापडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए । अहांसुहं देवाणुप्पिया ।
कठिन शब्दार्थ - पुव्वावरण्हकालसमयंसि दिन के पिछले भाग में, महाकालंसि सुसाणंसि - महाकाल नामक श्मशान में, एगराइयं एक रात्रिकी, महापडिमं - महाप्रतिमा, उवसंपज्जित्ता णं - धारण करके, विहरित्तए - विचरना चाहता हूँ ।
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भावार्थ उसके बाद वे गजसुकुमाल अनगार, जिस दिन प्रव्रजित हुए, उसी दिन, दिन के चौथे प्रहर में भगवान् अरिष्टनेमि के पास आ कर तीन बार विधियुक्त वंदन - नमस्कार किया और इस प्रकार बोले - 'हे भगवन्! आपकी आज्ञा हो, तो मेरी ऐसी इच्छा है कि महाकाल श्मशान में जा कर एक रात्रि की महाप्रतिमा (भिक्षु प्रतिमा) स्वीकार करूँ अर्थात् सम्पूर्ण रात्रि ध्यानस्थ हो कर खड़ा रहूँ।
भगवान् ने कहा विवेचन
'हे देवानुप्रिय ! जैसा तुम्हें सुख हो, वैसा करो । ' बारहवीं भिक्षु प्रतिमा के क्या नियम हैं?
प्रश्न
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