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________________ वर्ग ३ अध्ययन ८ - देवकी का आर्त्तध्यान 来来来来来来来来来来来林林來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來 देवकी का आर्तध्यान तं धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ जासिं मण्णे णियगकुच्छिंसंभूयाई थणदुद्धलुद्धयाई महुरसमुल्लावयाइं मम्मण-पजंपियाई थणमूलकक्ख-देसभागं अभिसरमाणाई मुद्धयाइं पुणो य कोमलकमलोवमेहिं हत्थेहिं गिव्हिऊण उच्छंगे णिवेसियाई देंति समुल्लावए सुमहुरे पुणो पुणो मंजुलप्पभणिए। अहं णं अधण्णा अपुण्णा अकयपुण्णा एत्तो एगयरमवि ण पत्ता (एवं) ओहयमणसंकप्पा जाव झियायइ। . कठिन शब्दार्थ - धण्णाओ - धन्य, णियगकुच्छिंसंभूयाइं - अपनी कुक्षि से उत्पन्न हुए, थणदुद्धलुद्धयाइं स्तनदुग्धलुब्ध - स्तनपान के लोभी, महुरसमुल्लावयाई - मधुर आलाप करते हुए, मम्मण-पजंपियाई - तुतलाती बोली से मन्मन बोलते हुए, थणमूलकक्खदेसभाग- स्तन मूल से लेकर कक्ष तक के भाग, अभिसरमाणाई - अभिसरण करते हुए, मुद्धयाई - मुग्ध, कोमलकमलोवमेहिं हत्थेहिं - कमल के समान कोमल हाथों द्वारा, गिण्हिऊण - पकड़ कर, उच्छंगे - गोद में, णिवेसयाई देंति - बिठाती है, सुमहुरे समुल्लावएमधुर शब्दों में आलाप करते हुए, पुणो पुणो - बार बार, मंजुलप्पभणिए - मंजुल शब्दों में बोलते हैं, अधण्णा - अधन्य, अपुण्णा - अपुण्य, अकयपुण्णा - अकृतपुण्य, एगयरमविएक की भी, ओहयमणसंकप्पा- खिन्न मन से, झियायइ - आर्तध्यान करती। भावार्थ - वास्तव में वे माताएं धन्य हैं - भाग्यशालिनी हैं कि जिनकी कुक्षि से उत्पन्न हुए बच्चे स्तनपान करने के लिए अपनी मनोहर तोतली बोली से आकर्षित करते हैं और मम्मण शब्द करते हुए स्तनमूल से ले कर कक्ष (काँख) तक के भाग में अभिसरण करते रहते हैं, फिर वे मुग्धः (भोले) बालक अपनी माँ के द्वारा कमल के समान कोमल हाथों से उठा कर गोदी में बिठाये जाने पर दूध पीते हुए अपनी माँ से तुतले शब्दों में बातें करते हैं और मीठी-मीठी बोली बोलते हैं। . “मैं अधन्य हूँ, मैं अपुण्य हूँ - मैंने पुण्य नहीं किया, इसीसे मैं अपनी संतान की बालक्रीड़ा के आनंद का अनुभव नहीं कर सकी।" इस प्रकार वह देवकी खिन्न हृदय हो कर आर्तध्यान करने लगी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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