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________________ ३२ अन्तकृतदशा सूत्र *********************** ******************************** की आज्ञा प्राप्त कर दीक्षा धारण कर ली। गौतमकुमार के अध्ययन से इसमें यह विशेषता है कि इन्होंने सामायिक आदि चौदह पूर्वो का अध्ययन किया। बीस वर्ष दीक्षा-पर्याय का पालन किया और शत्रुञ्जय पर्वत पर जा कर एक मास की संलेखना कर के सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए। शेष सारा अधिकार गौतम कुमार के समान है। विवेचन - अर्हन्त अरिष्टनेमि प्रभु भद्दिलपुर के श्रीवन उद्यान में पधारे। तीसरे महाव्रत के धारक होने से प्रभु ने ठहरने के लिए उद्यानपालक की आज्ञा ग्रहण की। यथाविधि अवग्रह तृणादि की आज्ञा लेकर समवसृत हुए तथा तप संयम से आत्मा को भावित करने लगे। धर्म श्रवण करने परिषद् आई। अनीकसेन कुमार के कर्ण रन्ध्रों में प्रभु दर्शनार्थ जाते हुए जनसमूह का विपुल कोलाहल पड़ा। गौतमकुमार के समान अनीकसेन भी समवशरण में गये। प्रभु की पातक प्रक्षालिनी धर्मदेशना श्रवण की। वैराग्य हुआ। माता-पिता से आज्ञा लेकर प्रभु के चरणों में दीक्षा ग्रहण की। विशेषता यह है कि गौतमकुमार ने सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया था और संयम का बारह वर्ष पालन किया था जबकि अनीकसेन ने चौदह पूर्वो का अध्ययन किया और संयम का २० वर्षों तक पालन कर शत्रुञ्जय पर्वत पर सिद्ध हुए। प्रथम अध्ययन का उपसंहार एवं खलु! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते। भावार्थ - श्री सुधर्मा स्वामी कहते हैं कि - "हे जम्बू! सिद्धि-गति को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अंतगडदशा सूत्र के तीसरे वर्ग के प्रथम अध्ययन में अनीकसेन कुमार का उपर्युक्त वर्णन किया है। . ॥ तीसरे वर्ग का प्रथम अध्ययन समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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