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________________ अनीकसेनकुमार **************** कठिन शब्दार्थ - एयारूवं इस प्रकार, पीइदाणं - प्रीतिदान, दलयइ देता है, बत्तीसं हिरण्णकोडिओ - बत्तीस कोटि रजत मुद्रा, उप्पिंपांसायवरगए - श्रेष्ठ भवन के ऊपर के खंड में, फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थेहिं - मृदंगों के मस्तक फूटते थे यानी निरंतर बजती हुई मृदंगों से, भोगभोगाई - इन्द्रिय भोगों को, भुंजमाणे - भोगते हुए । वर्ग ३ अध्ययन १ ************************** Jain Education International -- भावार्थ नाग गाथापति ने सोना, चांदी आदि का बत्तीस-बत्तीस करोड़ धन अनीकसेन कुमार के लिए प्रीतिदान दिया, जैसा कि महाबलकुमार के लिए उसके पिता ने दिया था। अनीकसेन कुमार भी महाबलकुमार के समान भवन के ऊपर के खंड में निरन्तर बजती हुई मृदंगों से यावत् पूर्व पुण्योपार्जित मनुष्य सम्बन्धी भोग भोगते हुए सुखपूर्वक रहता था । विवेचन - महाबलकुमार का वर्णन भगवती सूत्र श० ११ उ० ११ में है । - - · भगवान् का पदार्पण तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठणेमी जाव समोसढ़े, सिरिवणे उज्जाणे अहापडिरूवं उग्गहं जाव विहरइ । परिसा णिग्गया । अहापडिरूवं - यथाविधि अपनी मर्यादा के अनुसार, उग्गहं कठिन शब्दार्थ अवग्रह को । भावार्थ ************************ - न्त अरिष्टनेमि भगवान् उस भद्दिलपुर नगर के बाहर श्रीवन नामक उद्यान में पधारे और अपनी मर्यादा के अनुसार अवग्रह ले कर विचरने लगे । जनसमुदाय रूप परिषद् धर्म-कथा सुनने के लिए अपने-अपने घर से निकली। संयमी जीवन और मोक्ष ३१ For Personal & Private Use Only f तएणं तस्स अणीयसेणस्स कुमारस्स तं महया जणसद्दं जहा गोयमे तहा णवरं सामाइयमाइयाइं चोद्दस पुव्वाइं अहिज्जइ । वीसं वासाई परियाओ, सेसं तहेव जाव सेत्तुंजे पव्वर मासियाए संलेहणाए जाव सिद्धे । कठिन शब्दार्थ - महया महान्, जणसद्दं - जनशब्द को, णवरं विशेषता है कि । भावार्थ जन-समुदाय का कोलाहल सुन कर अनीकसेन कुमार भी गौतम कुमार के समान अपने भवन से निकला और भगवान् के समीप आ कर धर्म - कथा सुनी तथा माता-पिता - www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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