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. वर्ग ३ अध्ययन १ - अनीकसेनकुमार *********************************************** मंडणधाई - मण्डन धात्री, कीलावणधाई - क्रीडन धात्री, अंकधाई - अंक धात्री, गिरिकंदरमल्लीणेव - पर्वत की गुफा में चम्पक वृक्ष के समान, सुहंसुहेणं - सुखपूर्वक, परिवड्डइ - बढ़ने लगा।
भावार्थ - उसी नगर में 'नाग' नाम का एक गाथापति रहता था। वह अतीव समृद्धिशाली और अपरिभूत (जिसका कोई भी पराभव-अपमान नहीं कर सकता) था। उसकी पत्नी का नाम 'सुलसा' था, जो अत्यन्त सुकुमाल एवं सुरूप थी। नाग गाथापति का पुत्र एवं सुलसा का अंगजात 'अनीकसेन' नाम का कुमार था। जिसके हाथ-पाँव अत्यन्त सुकुमाल थे और वह अत्यन्त सुरूप था। १. क्षीर-धात्री (दूध पिलाने वाली धायमाता) २. मज्जनधात्री (स्नान कराने वाली धायमाता) ३. मण्डन-धात्री (वस्त्र-अलंकार आदि से विभूषित करने वाली धायमाता) ४. क्रीडन-धात्री (क्रीड़ा कराने वाली धाय माता) और ५. अंक-धात्री (गोद में उठाने वाली धायमाता) इन पांच प्रकार की धायमाताओं से उसकी दृढ़-प्रतिज्ञ कुमार के समान प्रतिपालना की जाती थी। जिस प्रकार पर्वत की गुफा में रही हुई मनोहर चम्पक लता सुरक्षित रूप से बढ़ती है, उसी प्रकार अनीकसेन कुमार भी सुखपूर्वक बढ़ने लगा।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में अनीकसेन कुमार के माता-पिता और उसके बाल्यकाल का वर्णन किया गया है। . .... दृढ़प्रतिज्ञकुमार का वर्णन राजप्रश्नीय सूत्र में है। जिज्ञासुओं को वहाँ देखना चाहिए।
शैक्षणिक जीवन
(१२) तएणं तं अणीयसेणं कुमारं साइरेग अट्ठवासजायं अम्मापियरो कलायरिय जाव भोगसमत्थे जाए यावि होत्था। ... कठिन शब्दार्थ - साइरेग - सातिरेक - कुछ अधिक, अट्ठवासजायं - आठ वर्ष की अवस्था में, कलायरिय - कलाचार्य, भोगसमत्थे - भोग समर्थ। . भावार्थ - अनीकसेन कुमार की उम्र आठ वर्ष से कुछ अधिक हो गई, तो उसके मातापिता ने उसे शिक्षा प्राप्त करने के लिए कलाचार्य के पास भेजा। थोड़े ही समय में वह सभी कलाओं में पारंगत हो गया और युवावस्था को प्राप्त हुआ।
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