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________________ २८ अन्तकृतदशा सूत्र kekdee r ekkkk*********HIKARATHINKERekekker ******************** भावार्थ - हे भगवन्! इस आठवें अंग अंतगडदशा सूत्र के तीसरे वर्ग में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने तेरह अध्यनयों का वर्णन किया है, तो प्रथम अध्ययन का क्या भाव प्रतिपादन किया है? अनीकसेनकुमार (११) एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं भद्दिलपुरे णामं पयरे होत्था, रिद्धिस्थिमिय-समिद्धे वण्णओ। तस्स णं भद्दिलपुरस्स णयरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसिभाए सिरीवणे णामं उज्जाणे होत्था, वण्णओ। जियसत्तु राया। भावार्थ - हे जम्बू! उस काल उस समय में 'भदिलपुर' नाम का नगर था। वह नगर उत्तम नगरों के सभी गुणों से युक्त एवं धन-धान्यादि से परिपूर्ण था। उस भद्दिलपुर नगर के बाहर ईशान-कोण में सभी गुणों से युक्त श्रीवन नाम का उद्यान था। नगर में जितशत्रु राजा राज करता था। माता पिता और बाल्यकाल तत्थ णं भद्दिलपुरे णयरे णागे णामं गाहावई होत्था, अढे जाव अपरिभूए। तस्स णं णागस्स गाहावइस्स सुलसा णामं भारिया होत्था, सुकुमाला जाव सुरूवा। तस्स णं णागस्स गाहावइस्स पुत्ते सुलसाए भारियाए अत्तए अणीयसेणे णामं कुमारे होत्था, सुकुमाले जाव सुरूवे पंचधाइ परिक्खित्ते। तंजहा-खीरधाई, मज्जणधाई, मंडणधाई, कीलावणधाई, अंकधाई जहा दढपइण्णे जाव गिरिकंदरमल्लीणेव चंपगवरपायवे सुहंसुहेणं परिवड्डइ। - कठिन शब्दार्थ - णागे णामं - नाग नाम का, गाहावई - गाथापति, अढे - ऋद्धि सम्पन्न, अपरिभूए - अपरिभूत, भारिया - भार्या (पत्नी), सुकुमाला - सुकुमार, सुरूवा - सुरूप - रूपवती, अत्तए - पुत्र (अंगजात), पंचधाइ - पांच धायमाताओं से, परिक्खित्ते - घिरा हुआ - पालन पोषण किया हुआ, खीरधाई - क्षीर धात्री, मजणधाई - मज्जन धात्री, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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