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________________ २-१० अज्झायणाणि प्रथम वर्ग : शेष नौ(२-१०)अध्ययन एवं जहा गोयमो तहा सेसा वि वण्ही पिया, धारिणी माया, समुद्दे, सागरे, । गम्भीरे, थिमिए, अयले, कंपिल्ले, अक्खोभे, पसेणई, विण्हुए, एए एगगमा। पढमो वग्गो, दस अज्झयणा पण्णत्ता। कठिन शब्दार्थ - सेसा वि - शेष भी, वण्ही पिया - वृष्णि पिता, धारिणी माया - धारिणी माता, एगगमा - एक समान। __ भावार्थ - जिस प्रकार गौतमकुमार के प्रथम अध्ययन का वर्णन किया है, उसी प्रकार शेष समुद्रकुमार आदि के नौ अध्ययनों का वर्णन भी जानना चाहिए। कुमारों के नाम इस प्रकार हैं - २ समुद्रकुमार ३ सागरकुमार ४ गम्भीरकुमार ५ स्तिमितकुमार ६ अचलकुमार ७ कम्पिलकुमार ८ अक्षोभकुमार ६. प्रसेनजितकुमार और १९. विष्णुकुमार। इन सब के पिता का नाम 'अन्धकवृष्णि' और माता का नाम 'धारिणी' है। इसके अतिरिक्त इन नौं अध्ययनों में कोई भेद नहीं है। सब का वर्णन एक समान है। हे जम्बू! इस प्रकार प्रथम वर्ग के दस अध्ययनों का प्रतिपादन किया गया है। - विवेचनं - शंका - गौतमकुमार के पिता का नाम तो अंधकवृष्णि बताया गया, किंतु शेष नौ के पिता वृष्णि' हैं फिर इन्हें सगे भाई बताने का क्या आधार है? समाधान - यद्यपि प्रथम वर्ग के द्वितीय अध्ययन में 'वण्हीपिया' लिखा है तो भी एक ही वर्ग होने से तथा नाम साम्य नहीं होने से जैसे ‘भामा' के द्वारा ‘सत्यभामा' का ग्रहण होता है, वैसे ही वृष्णि' शब्द से अंधकवृष्णि का ग्रहण किया जाता है. तथा दसों को सगा भाई मानने की निर्विवाद परम्परागत धारणा है। ॥ प्रथम वर्ग के शेष नौ अध्ययन समाप्त॥ ॥ इति प्रथम वर्ग समाप्त॥ For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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