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________________ २२ अन्तकृतदशा सूत्र ************************************************************ महीना तप व तप संख्या तप के दिन पारणे के दिन पहला १५ उपवास १५ - दूसरा १० बेला هر ه तीसरा ८ तेला ا م مر ه سه سه سه سه سه ه दसवां ه ه ه ३२ ه ३४ चौथा ६ चोला पांचवां ५ पंचोला छठा ४ छह सातवां ३सात आठवां ३ अठाई नववां ३ नव ३ दस ग्यारहवां ३ ग्यारह बारहवां २ बारह तेरहवां २ तेरह चौदहवां २ चौदह पन्द्रहवां २ पन्द्रह ३० सोलहवां २ सोलह योग ४०७ ७३ विशेष जानने के लिए श्री भगवती सूत्र शतक २ उद्देशक १ तथा ज्ञातासूत्र प्रथम अध्ययन दृष्टव्य है। गुणरत्न-संवत्सर तप की एक ही परिपाटी होती है। गजसुकुमाल व अर्जुन अनगार के अतिरिक्त अन्तकृत सूत्र के सभी पुरुष नायकों ने द्वादश भिक्षु प्रतिमाओं व गुणरत्न-संवत्सर तप का आराधन किया था, ऐसी धारणा है। " प्रथम अध्ययन का उपसंहार एवं खल जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते। पढभं अज्झयणं समत्तं॥ 3. भावार्थ - श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बू स्वामी से कहते हैं - 'हे आयुष्मन् जम्बू! सिद्धिगति नामक स्थान को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अंतगडदशा नामक आठवें अंग के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन में गौतमकुमार के मोक्ष प्राप्ति का वर्णन किया है।' || प्रथम वर्ग का प्रथम अध्ययन समाप्त॥ ४८०. For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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