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अन्तकृतदशा सूत्र
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गौतम अनगार द्वारा भिक्षु-प्रतिमा ग्रहण
(८)
तणं से गोयमे अणगारे अण्णया कयाइं जेणेव अरहा अरिट्ठणेमी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता, अरहं अरिट्ठणेमिं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेड़, करिता वंदइ, णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ।
जाते हैं, तिक्खुत्तो
कठिन शब्दार्थ - जेणेव - जहां, तेणेव - वहां, उवागच्छड़ तीन बार, आयाहिणं - आदक्षिणा, पयाहिणं - प्रदक्षिणा, करेड़ करते हैं, तुम्भेहिं आपकी, अब्भणुण्णाए समाणे आज्ञा मिलने पर, मासियं - मासिकी, भिक्खुपडिमं
भिक्षु प्रतिमा को, उवसंपज्जित्ताणं - स्वीकार करके, विहरित्तए - विचरूं ।
भावार्थ एक दिन गौतम अनगार अर्हत अरिष्टनेमि के समीप आये और भगवान् अरिष्टनेमि को तीन बार आदक्षिण- प्रदक्षिण किया। आदक्षिण-प्रदक्षिण कर के गौतमकुमार ने भगवान् को वंदना नमस्कार किया और वे इस प्रकार निवेदन करने लगे- 'हे भगवन्! आपकी आज्ञा हो, तो मैं मासिकी भिक्षु-प्रतिमा स्वीकार करूँ।' भगवान् ने फरमाया " जैसे सुख हो वैसे करो। "
विवेचन - दोनों हाथ जोड़ने को 'अंजलिपुट' कहते हैं। अंजलिपुट को अपने दाहिने कान से लेकर सिर पर घुमाते हुए बायें कान तक ले जा कर फिर उसे घुमाते हुए दाहिने कान पर ले RISHNA लाट पर स्थापन करे, इसे आदक्षिण-प्रदक्षिण कहते हैं।
संथारा और निर्वाण
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एवं जहा खंदओ तहा बारस भिक्खुपडिमाओ फासेइ, फासित्ता गुणरयणं वि तवोकम्मं तहेव फासेइ, णिरवसेसं एवं जहा खंदओ तहा चिंतइ, तहा आपुच्छइ तहा थेरेहिं सद्धिं सेत्तुंजं दुरूहड़, मासियाए संलेहणाए बारस वरिसाई परियाए जाव सिद्धे ।
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कठिन शब्दार्थ फासेड़ - स्पर्श करता है, गुणरयणं - गुणरत्न, तवोकम्मं - तप कर्म, णिरवसेसं - निरवशेष, चिंतड़ - चिंतन करते हैं, आपुच्छइ - पूछते हैं, थेरेहिं .
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