________________
१०
अन्तकृतदशा सूत्र ** **kakkakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakaka*******kakaktakektakkakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakake**
क्रीड़ा की सामग्रियों से परिपूर्ण थी। अतएव वह प्रत्यक्ष देवलोक समान थी। वह प्रासादीय (दर्शकों के मन को प्रसन्न करने वाली) और दर्शनीय थी। वह अभिरूप (प्रतिक्षण नवीन रूप वाली) और प्रतिरूप (सर्वोत्तम-असाधारण) रूप वाली सर्वांग सौन्दर्यपूर्ण देदीप्यमान थी। .
कृष्ण वासुदेव की ऋद्धि
(५) तीसे णं बारवईए णयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए एत्थ णं रेवयए णाम पव्वए होत्था, वण्णओ। तत्थ णं रेवयए पव्वए णंदणवणे णामं उज्जाणे होत्था, वण्णओ। सुरप्पिए णामं जक्खाययणे होत्था, पोसणे। से णं एगेणं वणसंडेणं परिक्खित्ते, असोगवरपायवे। . . . .
तत्थ णं बारवईए णयरीए कण्हे णामं वासुदेवे राया परिवसइ, महयाहिमवंत रायवण्णओ।
कठिन शब्दार्थ - रेवयए - रैवतक, पव्वए - पर्वत, णंदणवणे - नंदनवन, उज्जाणेउद्यान, सुरप्पिए - सुरप्रिय, जक्खाययणे - यक्षायतन, पोराणे ; प्राचीन, वणसंडेणं - वनखण्ड से, परिक्खित्ते - घिरा हुआ, असोगवरपायवे - श्रेष्ठ अशोकवृक्ष, परिवसइ - रहता था।
भावार्थ - उस द्वारिका नगरी के बाहर उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में रैवतक नामक पर्वत था। उस पर्वत पर नंदनवन नामक उद्यान था, जिसका पूरा वर्णन अन्य सूत्रों से जानना चाहिए। उस उद्यान में सुरप्रिय नाम के यक्ष का यक्षायतन था। वह बहुत प्राचीन था। उस उद्यान में वनखण्ड से घिरा हुआ एक अशोक वृक्ष था। ___उस द्वारिका नगरी में कृष्ण वासुदेव राज करते थे। जिस प्रकार महा हिमवान् पर्वत, क्षेत्रों की मर्यादा करता है, उसी प्रकार कृष्ण वासुदेव, लोक मर्यादा को नियत एवं स्थिर करने वाले और लोक मर्यादा के पालक थे।
से तत्थ समुद्दविजयपामोक्खाणं दसण्हं दसाराणं, बलदेवपामोक्खाणं पंचण्हं महावीराणं,पज्जुण्णपामोक्खाणं अटुट्ठाणं कुमारकोडीणं, संबपामोक्खाणं सट्ठीए दुईत साहस्सीणं, महासेणपामोक्खाणं छप्पण्णाए बलवग्गसाहस्सीणं,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org