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________________ २२३ ******************************************************************** ११. चेइए-पुण्णभद्दे चेइए - पृ० ४ यहां चैत्य का प्रकरण संगत अर्थ यक्षायतन किया गया है। पृ० ११६ पर 'गुणसिलए चेइए' पद का अर्थ गुणशीलक उद्यान किया गया है। 'चेइए' शब्द का प्रयोग श्री उत्तराध्ययन सूत्र के नववें अध्ययन में वृक्ष व उद्यान दोनों अर्थों में अलग-अलग भी हुआ है। श्री उपासकदशा सूत्र में चैत्य का अर्थ साधु अर्थ में भी किया गया है। 'शब्द के अनेक अर्थ होते हैं' - इस नियम को जानने वालों के लिए यह कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है। 'जयध्वज' पृ० ५७३ से यह जानने को मिलता है कि चैत्य शब्द के ५७ व चेइय शब्द के ५५ कुल ११२ अर्थों का संयोजन २८ गाथाओं में किया गया है। अतः चैत्य शब्द का प्रकरण संगत अर्थ किया जाना उचित है। परिशिष्ट (२) श्री अन्तकृत में अन्य आगम-स्थलों का संकेत - १. पृ० ३ 'वण्णओ' सभी वर्णक पद श्री उववाई सूत्र का संकेत करते हैं। २. पृ० ५ 'सुहम्मे थेरे जाव पंचहिं..' यह पद श्री ज्ञाताधर्म कथांग सूत्र के प्रथम अध्ययन का संकेत करता है। पूज्य गुरुदेव श्री के अनुसार उपरोक्त स्थल में वर्णित सभी विशेषणों को गणधर भगवान् के गुण माना जाता है। ३. पृ० ५ 'परिसा णिग्गया जाव पडिगया' - यह संकेत श्री उववाई सूत्र के लिए है, जहाँ परिषदा के आगमन-निर्गमन का सविस्तार वर्णन है। ४. पृ० ६ ‘अज जंबू जाव पजुवासमाणे' - यह संकेत भी ज्ञाता अ० १ अथवा गौतमस्वामी की सादृश्यताहेतुक हो तो भगवती सूत्र के प्रारम्भ का समझना चाहिये। ५. पृ० १४ 'जहा मेहे' - ज्ञाता अ० १। - ६. पृ० ३८ 'जहा गोयमसामी' भगवती, उपासकदसा आदि। ७. पृ० ४६ 'जहा देवाणंदा' भगवती शतक : उद्देशक ३३। ८. पृ० ६२ 'रिउव्वेय जाव सुपरिणिट्टिए' भगवती शतक २ उद्देशक १। ६. पृ० ६७-६८ 'जहा महब्बलस्स' - भगवती शतक ११ उद्देशक ११। १०.पृ० ७४ ‘उजला जाव दुरहियासा' रायपसेणी प्रदेशी वर्णन। . आगमकारों ने 'जाव' शब्द से स्थान-स्थान पर विस्तृत पाठों का जो संकोच किया है, वे अन्य आगमों में उपलब्ध होते हैं। अतः अंतकृत सूत्र के व्याख्याता को अन्यान्य आगमों का भी अध्ययन करना अत्यावश्यक ध्यान में आता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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