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वर्ग अध्ययन ५
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सुकृष्णा आर्या
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उसको उतने से गुणा करके उतने जोड़िये, आधे कीजिये उतने से वापस गुणा कीजिये तो उतनी दत्तियों की संख्या आ जाएगी। यथा -
७ × ७ = ४६ + ७ = ५६ का आधा २८७ = १६६ दत्ति ।
८८ = ६४ +८ = ७२ का आधा ३६ x = २८८ दत्ति | ८१ + ६ = ६० का आधा ४५ × ६ = ४०५ दत्ति ।
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१० x १०
= १०० + १० =
११० का आधा ५५ x १० = ५५० दत्ति ।
आराहित्ता बहूहिं चउत्थ जाव मासद्धमासविविहतवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ । तएणं सा सुकण्हा अज्जा तेणं ओरालेणं जाव सिद्धा ।
कठिन शब्दार्थ - मासद्धमासविंविहतवोकम्मेहिं - अर्द्धमासखमण और मासखमण आदि विविध तपस्याओं से ।
भावार्थ फिर सुकृष्णा आर्या उपवासादि से ले कर अर्द्धमासखमण और मासखमण आदि विविध प्रकार की तपस्या से आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी । इस उदार एवं · घोर तपस्या के कारण सुकृष्णा आर्या अत्यधिक दुर्बल हो गई। अन्त में संथारा कर के सम्पूर्ण कर्मों का क्षय कर सिद्धिगति को प्राप्त हुई ।
विवेचन श्री उववाई सूत्र में इन प्रतिमाओं का भी उल्लेख है। इन प्रतिमाओं के परिवहन में केवल दत्तियों का परिमाण ही है, आसन आदि साध्वियों के लिए निषिद्ध ही हैं। दिखने में यह तप साधारण लगता है, पर इससे सुकृष्णा आर्या का शरीर काली आर्या की भांति कृश हो गया था। महान् अवमोदरिका रूप यह तप भी विशिष्ट है।
॥ आठवें वर्ग का पांचवां अध्ययन समाप्त ॥
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