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________________ २०२ अन्तकृतदशा सूत्र **************************************************************** करना चाहती हूँ।' आर्य. चन्दनबाला आर्या ने कहा - “हे देवानुप्रिये! जिस प्रकार तुम्हें सुख हो, वैसा करो, धर्म-कार्य में प्रमाद मत करो।" ___तए णं सा सुकण्हा अज्जा अज्जचंदणाए अज्जाए अब्भणुण्णाया समाणी अट्टट्ठमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ, पढमे अट्ठए एक्केक्कं भोयणस्स दत्तिं पडिगाहेइ, एक्केक्कं पाणगस्स दत्तिं जाव अट्टमे अट्ठए अट्ट भोयणस्स दत्तिं पडिगाहेइ अट्ठ पाणगस्स, एवं खलु अट्ठमियं भिक्खुपडिमं चउसट्ठीए राइदिएहिं दोहि य अट्ठासीएहिं भिक्खासएहिं अहासुत्तं जाव आराहित्ता। ... भावार्थ - इसके बाद सुकृष्णा आर्या “अष्टअष्टमिका भिक्षुप्रतिमा" स्वीकार कर विचरने लगी। उन्होंने प्रथम अष्टक में एक दत्ति आहार की और एक दत्ति पानी की ली और दूसरे अष्टक में दो दत्ति आहार की और दो दत्ति पानी की ली। इसी प्रकार क्रम से आठवें अष्टक में आठ दत्ति आहार और आठ दत्तिं पानी की ग्रहण की। इस प्रकार अष्टअष्टमिका भिक्षु-प्रतिमा तपस्या चौसठ दिन-रात में पूर्ण हुई। जिसमें आहार-पानी की दो सौ अठासी दत्तियाँ हुई। सुकृष्णा आर्या ने सूत्रोक्त विधि से इस अष्टअष्टमिका भिक्षुप्रतिमा की आराधना की। अष्टअष्टमिका भिक्षुप्रतिमा २ | २ | २ | २ | २ | २ | २ । १६ । m | 10 ० | x | ur ७ | ७ | ७ | ७ ७ |9. ७ ७ ७ । ५६ (६४ दिवस * २८८ दत्तियाँ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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