________________
सत्तमो वग्गो - सातवां वर्ग
नंदा आदि रानियाँ
जइ णं भंते! सत्तमस्स वग्गस्स उक्खेवओ जाव तेरस अज्झयणा पण्णत्ता। तं जहा -
. नंदा तह नंदवई, नंदोत्तर-नंदसेणिया चेव। मरुया सुमरुया महामरुया, मरुद्देवा य अट्ठमा॥१॥ भद्दा य सुभद्दा य, सुजाया सुमणाइया।
भूयदिण्णा य बोधव्वा, सेणिय-भज्जाण णामाइं॥२॥ • कठिन शब्दार्थ - तेरस अज्झयणा - तेरह अध्ययन, सेणिय-भज्जाण - श्रेणिक की रानियाँ, णामाई - नाम वाली।
. भावार्थ - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अंतगडसूत्र के छठे वर्ग के जो भाव कहे, वे मैंने आपके श्रीमुख से सुने। अब कृपा कर सातवें वर्ग के भाव कहिए? · सुधर्मा स्वामी ने कहा - 'हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सातवें वर्ग में तेरह अध्ययन कहे हैं। वे इस प्रकार हैं - १. नन्दा २. नन्दवती ३. नन्दोत्तरा ४. नन्दश्रेणिका ५. मरुता ६. सुमरुता ७. महामरुता ८. मरुद्देवा ६. भद्रा १०. सुभद्रा ११. सुजाता १२. सुमनातिका और १३. भूतदत्ता। ये तेरह नाम श्रेणिक राजा की रानियों के हैं। सातवें वर्ग के तेरह अध्ययन इन्हीं के नाम के हैं।
दीक्षा एवं सिद्धि जइ णं भंते! तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अलैं पण्णत्ते?
भावार्थ - जम्बू स्वामी ने पूछा - हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सातवें वर्ग में तेरह अध्ययन कहे हैं, उनमें से प्रथम अध्ययन में क्या भाव कहे हैं? ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org