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________________ १७२ ****************s अन्तकृतदशा सूत्र **************** दीक्षा और मोक्ष गमन तए णं से अलक्खे राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए जहा उदायणे तहा णिक्खंते, णवरं जेट्ठ पुत्तं रज्जे अहिसिंचइ, एक्कारस अंगाई, बहुवासापरियाओ जाव विपुले सिद्धे । एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव छट्टमस्स वग्गस्स अयमट्ठे पण्णत्ते । ॥ छट्टो वग्गो समत्तो ॥ दीक्षा ली, जेट्ठ कठिन शब्दार्थ जहा उदाय उदायन के समान, णिक्खते पुत्तं - ज्येष्ठ पुत्र को, रज्जे- राज्य पर, अहिसिंचइ - स्थापित किया । भावार्थ धर्म उपदेश सुन कर राजा अलक्ष के हृदय में वैराग्य उत्पन्न हो गया। इसके बाद अलक्ष राजा ने भगवान् के पास, उदायन राजा के समान दीक्षा अंगीकार की । उदायन की प्रव्रज्या और इनकी प्रव्रज्या में यह अन्तर है कि उदायन राजा ने तो अपना राज्य अपने भानेज को दिया था और इन्होंने अपना राज्य अपने ज्येष्ठ पुत्र को दे कर दीक्षा अंगीकार की। उन्होंने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया तथा बहुत वर्षों तक चारित्र - पर्याय का पालन कर विपुलगिरि पर सिद्ध हुए । श्री सुधर्मा स्वामी, अपने शिष्य जम्बू स्वामी से कहते हैं - 'हे आयुष्मन् जम्बू! श्रमणभगवान् महावीर स्वामी ने अंतगड सूत्र के छठे वर्ग के ये भाव कहे हैं। जैसा मैंने सुना, वैसा तुम्हें कहा है। - Jain Education International - विवेचन " जहा कोणिए जाव धम्मकहा" - औपपातिक सूत्र में वर्णित कोणिक राजा के समान राजा अलक्ष ने भी प्रभु की सेवा में पहुँच कर पर्युपासना की । प्रभु ने धर्म कथा फरमाई। *********** " जहा उदायणे तहा णिक्खंते" - जिस प्रकार महाराजा उदायन ने दीक्षा ग्रहण की थी, उसी प्रकार अलक्ष नरेश भी दीक्षित हुए। उदायन राजा का वर्णन भगवती सूत्र के शतक १३ उद्देशक ६ में आया है। उसके अनुसार उदायन सिन्धु - सौवीर आदि सोलह देशों का स्वामी था । ॥ छठे वर्ग का सोलहवां अध्ययन समाप्त ॥ ॥ इति छठा वर्ग समाप्त ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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