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________________ वर्ग ६ अध्ययन १५ ********** - - दीक्षा की आज्ञा हेतु माता-पिता से चर्चा Jain Education International ********************* *************** विवेचन भगवान् के समीप से रवाना हो कर अतिमुक्तक अपने भवन में आए तो रास्ते में ही विचार किया- 'माता-पिता मुझे अबोध समझ कर आज्ञा नहीं देंगे। अतः भगवान् से मैंने जो ज्ञान पाया उसकी पहेली बना कर अपने ज्ञानवान् होने का सबूत दूंगा, तब ही मुझे आज्ञा प्राप्त होगी । ' मेघकुमार, जमालिकुमार आदि तो बड़े थे अतः उनकी दीक्षा की बात सुनकर उनकी माताको मूर्च्छा आ गई किंतु जब अतिमुक्तक के माता-पिता ने उसकी दीक्षा की बात सुनी तो उन्हें हंसी मिश्रित विस्मय हुआ । वे बालक से कहने लगे - 'हे वत्स ! तुम बालक हो, असंबुद्ध हो तुम कोई तत्त्वज्ञ थोड़े ही हो । धर्म तो बहुत ही गहन चीज है तुम भला उसे क्या जानो ? तुम्हारी अवस्था ही इतनी छोटी है कि धर्म के मर्म को जानना अभी संभव ही नहीं है, अतः तुम दीक्षा की बात मत करो।' तणं से अइमुत्ते कुमारे अम्मापियरो एवं वयासी " एवं खलु अहं अम्मयाओ! जं चेव जाणामि तं चेव ण जाणामि, जं चेव ण जाणामि तं चेव जाणामि । " १६७. तए णं तं अड़मुत्तं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी - "कहं णं तुमं पुत्ता! जं चेव जाणासि तं चेव ण जाणासि, जं चेव ण जाणासि तं चेव जाणासि ? " भावार्थ - यह सुन कर अतिमुक्तक कुमार ने कहा 'हे माता - पिता ! मैं जिसे जानता हूँ, उसे नहीं जानता और जिसे नहीं जानता, उसे जानता हूँ । ' अतिमुक्तक कुमार की यह बात सुन कर उसके माता-पिता ने कहा 'हे पुत्र ! तुमने यह क्यों कहा कि - 'जिसे मैं जानता हूँ, उसे नहीं जानता और जिसे नहीं जानता हूँ, उसे जानता हूँ। इसका क्या अभिप्राय है?' तए णं से अइमुत्ते कुमारे अम्मापियरो एवं वयासी " जाणामि अहं अम्मयाओ! जहा जाएणं अवस्सं मरियव्वं, ण जाणामि अहं अम्मयाओ! काहे वा कहिं वा कहं वा केच्चिरेण वा ? ण जाणामि अहं अम्मयाओ! केहिं कम्माययणेहिं जीवा रइयतिरिक्खजोणिय - मणुस्स - देवेसु उववज्जंति, जाणामि णं अम्मयाओ! जहा सएहिं कम्माययणेहिं जीवा णेरइय जाव उववज्जंति, एवं खलु अहं अम्मयाओ! - - For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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