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________________ चउत्थं अज्झायणं - चतुर्थ अध्ययन काश्यप गाथापति (७५) उक्खेवओ चउत्थस्स अज्झयणस्स। एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, गुणसिलए चेइए। तत्थ णं सेणिए राया। कासवे णामं गाहावई पडिवसइ, जहा मकाई, सोलस वासा परियाओ विपुले सिद्धे। भावार्थ - जम्बू स्वामी ने श्री सुधर्मा स्वामी से पूछा - 'हे भगवन्! श्रमण-भगवान् महावीर स्वामी ने छठे वर्ग के तीसरे अध्ययन में जो भाव फरमाये, वे मैंने सुने। अब चौथे अध्ययन में क्या भाव फरमाये हैं, सो कृपा कर के कहिये।' श्री सुधर्मा स्वामी ने कहा - 'हे जम्बू! उस काल उस समय राजगृह नामक नगर था। राजगृह नगर के बाहर गुणशीलक उद्यान था। श्रेणिक राजा राज करते थे। उस नगर में 'काश्यप' नाम के एक गाथापति रहते थे। उन्होंने मकाई गाथापति के समान भगवान् महावीर स्वामी से दीक्षा अंगीकार की। सोलह वर्ष तक श्रमण-पर्याय का पालन किया और अन्त में विपुलगिरि पर सिद्ध हुए। ॥छठे वर्ग का चौथा अध्ययन समाप्त॥ पंचमं अज्झायणं - पंचम अध्ययन क्षेमक गाथापति एवं खेमए विगाहावई, णवरं काकंदी णयरी, सोलस वासा परियाओ विपुले पव्वए सिद्धे। भावार्थ - इसी प्रकार क्षेमक गाथापति का भी चरित्र है। ये काकन्दी नगरी के रहने वाले थे। भगवान् के पास दीक्षा ले कर सोलह वर्ष तक चारित्र-पर्याय का पालन किया और अन्त में विपुल-गिरि पर सिद्ध हुए। ॥छठे वर्ग का पांचवाँ अध्ययन समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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