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अन्तकृतदशा सूत्र 水利水水水水水水水************************************************** कृत तप को प्रगृहीत विशेषण से विशेषित किया है, जो उत्कृष्ट भावना से ग्रहण किया हुआ, इस अर्थ का बोधक है। अर्जुन मुनि की आस्था संकट काल में शिथिल नहीं हुई, वे सुदृढ़ साधक बन कर साधना-जगत् में आए थे और अन्त तक सुदृढ़ साधक ही रहे। उन्होंने अपने मन को कभी डांवाडोल नहीं होने दिया।
यदि ‘पयत्तेणं' का संस्कृत रूप प्रयत्नेन' किया जाय तो उदार और विपुल ये दोनों प्रयत्न के विशेषण बन जाते हैं, तब इन शब्दों का अर्थ होगा - 'प्रधान विशाल प्रयत्न से ग्रहण किया गया।' तप करना साधारण बात नहीं है, इसके लिए बड़े पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है। इसी महान् पुरुषार्थ को प्रधान विशाल प्रयत्न कहा गया है। ____'महानुभाग' शब्द प्रभावशाली अर्थ का बोधक है। जिस तप के प्रताप से अर्जुनमुनि ने जन्म-जन्मान्तर के कर्मों को नष्ट कर दिया, परम साध्य निर्वाण प्राप्त कर लिया, उसकी प्रभावगत महत्ता में क्या आशंका हो सकती है? ___घास के ठट्ट लगे हुए हो और एक चिनगारी लग जाए तो सारा घास भस्मीभूत हो जाता है, वैसे ही 'भवकोडिसंचियं कम्मं तवसा णिज्जरिज्जइ' - करोड़ों भवों के कर्म तपस्या के द्वारा नष्ट हो जाते हैं। अर्जुन अनगार ने सिर्फ छह महीने तक दीक्षा पाल कर ही अपना प्रयोजन सिद्ध कर लिया। ___ · अस्तु, अर्जुन अनगार ने अपनी आत्मा को अनंत अव्याबाध सुख प्रदान किया। पापीमहापापी भी धर्म की चरण-शरण में पाकर किस प्रकार शरण्य बन सकता है, गटर का पानी गंगाजल बनकर लोक-पूज्य बन जाता है, यह बात सिद्ध करने के लिए यह अध्ययन पर्याप्त है।
परम्परा से श्रुत है कि अर्जुन ने ५ महीने १३ दिन में ११४१ जीवों की हत्या की यानी कुछ कम ६ महीने में हिंसा कर नवीन कर्म बांधे, किंतु ६ महीने की अल्पावधि में ही है समस्त कर्मों को तोड़ कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो गए।
अध्ययन समाप्त।
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